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________________ (११) चौपाई १६ मात्रा। नमों रिषभ कैलासपहारं । नेमिनाथ गिरनार निहारं ।। वासुपूज्य चम्पापुर वंदों । सनमति पावापुर अभिनंदौ ॥२॥ वंदौं अजित अजितपददाता । वंदौं संभव भवदुखघाता ॥ वंदौं अभिनन्दन गणनायक । वंदौं मुमति मुमतिके दायक ॥३ वंदौं पदम मुकतिपदमाघर । वंदौं मुपास आशपासाहर ।। वंदौ चन्द्रप्रभ प्रभु चन्दा । वंदौं मुविधि मुविधिनिधिकंदा ।।४ बंदौं शीतल अघतपशीतल । वंदौं प्रियांस श्रियांस महीतल ॥ वंदौं विमल विमलउपयोगी। वंदौं अनंत अनंतमुखभोगी ।।८।। वंदौं धर्म धर्मविसतारा । वंदौं शांति शांतमनधारा ।। वंदौ कुंथु कुंथुरखवालं । वंदौं अरि अरिहर गुनमालं ॥ ६ ॥ वंदौं माल काममल चूरन । वंदौं मुनिसुव्रत व्रतपूरन । वंदौं नमि जिन नमित मुरासुर । वंदौं पास पासभ्रमजरहर ॥७ वीसौं सिद्ध भूमि जा ऊपर । शिखरसम्मेद महागिरि भूपर। एक वार बंदै जो कोई । ताहि नरकपशुगति नहिं होई ॥८॥ नरगतिनृप मुर शक कहावे ।तिकुंजग भोग भोगि शिव पावै ।। विघनविनाशक मंगलकारी। गुणविलास वंदें नरनारी ॥९॥ छद पत्ता। जो तीरथ जावै पाप मिटावै, ध्यावै गावै भगति करें। ताको जस कहिये सम्पति लहिये, गिरिके गुणको बुध उचरै।। ॐ ह्रीं श्री चतुर्विशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो अर्घ निर्वः ।
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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