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________________ (९) स्व. कविवर धानतरायजी कृतचतुर्विंशतितीर्थकर निर्वाणक्षेत्र पूजा । खोरठा। परम पूज्य चौवीस, जिह जि थानक शिव गये। सिद्धभृमि निशदीस, मन वच तन पूजा करौं ॥१॥ ॐ हीं श्री चतुर्विशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्राणि अत्र अवतर भक्तर संवौषट् । ॐ हीं चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्राणि अत्र विष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्राणि पत्र मम सन्निहितो भवत भवत वषट् । अष्टक। गीता छन् । शुचि श्रीरदधि सम नीर निरमल, कनकझारीमें भरौं । संसारपार उतार स्वामी, जोरकर विनती करौं । सम्मेदगिरि गिरनर चंपा, पावापुरि कैलासकौं। पूजों सदा चौवीस मिन, निर्वाणभूमि निवासको । ॐही चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा॥१॥ केशर कपूर सुगंध चंदन, सलिल शीतल विस्तरौं । भवतापको संताप मेटी, जोर कर विनती करौं ।स०॥ ॐ हीं चतुर्विशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो चन्दनं निर्वपामीति। मोतीसमान अखंड तंदुळ, अमल आनंद धरि तरों। गौमुन हरौ गुन करौ हमको, जोरकर विनती करौं ॥०॥ ॐ हीं चतुर्विशतितीकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो अक्षतान निर्वामीति.
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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