SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४] जैन तीर्थयात्रादर्शक । लाखोंका व्यापार होता था । हीरा, मोती, माणिकका व्यापार यहां बहुत बढ़िया होता था। इस शहरमें बड़े२ धनान्य लोग रहते थे। कोई कारण पाकर किसी बादशाहने हमला किया था। सो ग्राम लुटने लगा। मनुष्योंको मारने लगे। फिर पहाड़ ऊपर महावीर स्वामीके मंदिरपर भी हमला किया। मंदिर लुटने लगा । भगवान महावीर स्वामीकी प्रतिमाको फोड़ने लगे । सो पांवके अंगूठेमें टांकी लगाते ही दुधकी धारा लग गई ! मंदिर दूधसे भर गया । मधुमक्खियां उड़कर राजाकी फौजको काटने लगी। हजारों लोग अंधे होगये ! पत्थर बरसने लगे। लोग हाहाकार करते हुए भागने लगे। बादशाह हाथ जोड़कर भगवानकी शरणमें गया और बोला कि नैनोंका देव सच्चा है । सब माल छोड़कर और अपने प्राण लेकर भागे । ऐसा यहांका बहुत अतिशय प्रसिद्ध है । अब भी लोग मनोमानता करने और दर्शन करनेको आते-जाते हैं । यह ग्राम वर्तमानमें छोटासा है। यहां एक बड़ी धर्मशाला, १ तालाव आदि है। पहाके ऊपर और नीचे सब मिलाकर कुल ६४ मंदिरजी हैं । पहाके ऊपर मानेको सीढ़ियां, कोट, दरवाना, परकोटा और पत्थरकी सड़क सब जगह बनी हुई है। इसमें मूलनायक महावीर स्वामीका बहुत बड़ा मंदिर बना हुआ है। चारों तरफ परकोटा मादिसे शोभायमान है । ऊपर लिखे हुए अतिशय युक्त महावीरस्वामीकी प्रतिमा पद्मासन विराजमान है। और भी यहांकी सब प्रतिमा बहुत मच्छी हैं। यहांकी रचना कौरह सुन्दर है, यहांकी यात्रा करके लौटकर दमोह यावे । और दमोहसे सागरकी टिकट १) देकर लेना चाहिये।
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy