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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक। सेठ नत्थुसा पासुसा बड़े धनाढ्य हैं। सो इनके मकानके उपर १ प्रतिमा ३ अंगुलकी कायोत्सर्गासन लाल मूंगाकी, १ प्रतिमा मोतीकी, १ चांदीकी हैं उनका दर्शन करना चाहिये। फिर लौटकर परतवाड़ा, बगीचा इन दोनों स्थानों का दर्शन करें। तांगा, बैलगाड़ी मोटर अथवा पैदल श्री मुक्तागिरिनी जाना चाहिये । यहांसे ९ मील दूर है । ४ मील खुरपी तक पक्की सड़क है । ५ मील तक कच्ची सड़क है । खुरपीमें रास्तेपर एक बढ़िया मंदिर है । यहांका जाते या आते समय दर्शन करना चाहिये। यहांपर रात्रि में रहनेका भी सुभीता है। (१०७) श्री मुक्तागिरि (सिद्धक्षेत्र )। यहांपर पहाड़की तलेटीमें १ मंदिर, १ दि० धर्मशाला, कुआ नदी, कोठीका कारखाना है । मुनीम, पुनारी, नौकर, चाकर यहां पर रहते हैं । यहांसे यात्रियोंको निवट कर शुद्ध द्रव्य लेकर पहाड़की वंदनाको जाना चाहिये । पहाड़की चटाई आध मीलकी सीधी है। पहाड़पर ३५ मंदिर, देहरा चरणपादुका है। पहाड़ बहुत रमणीक है । यहांसे साढ़े तीन करोड़ मुनि मोक्ष पधारे हैं। पहाइपर हमेशा रात्रि केशरकी वृष्टि होती है। कभीर कुछ वाजे भी सुनाई पड़ते हैं, पहाड़ ऊपर नदी बहती है, पानी वहता हुआ नीचे तक आता है । यहांपर पहाड़की गुफामें बड़ा२ भौहरा, परकोटा, प्राचीन मंदिर प्रतिमा बहुत बढ़िया हैं । पहाइपर २ देहरिया हैं । महापर पानी पड़ता है। कई मंदिरोंमें बड़ी विशाल प्रतिमाएं है। एक पार्श्वनाथस्वामीका बड़ा मंदिर है। एक भौंहरामें दीपले वन मना पड़ता है। यह पहाड़ मेढ़ेके सींघ सरीखा
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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