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________________ [६१] केशरियाननाथ कोयल नामक नदी के किनारे कंगूरेदार कोट के भीतर प्राचीन मन्दिर और धर्मशालायें बनी हुई हैं। मूलनायक श्री प्रादिनाथ जी की ३।। फुट ऊँची महामनोहर और अतिशययुक्त पद्मासन प्रतिमा है । यह मन्दिर ५२ देहरियों ( देवकुलकाओं) से युक्त, विशाल और लाखों रुपयों की लागत का है। मूलतः यहां पर दिगम्बर जैन भट्टारकों का आधिपत्य था और उन्हीं की बनवाई हुई अठारवीं शताब्दी की मूर्तियां और भव्य इमारतें हैं । किन्तु आजकल जैन अजैन सब ही दर्शन पूजन करते हैं। यहां केशर खूब चढ़ाई जाती है। तीनों समय पूजा होती है। दूध का अभिषेक होता है। बड़े मन्दिर के सामने फाटक पर हाथी के ऊपर नाभिराजा और मरुदेवी जी की शोभनीय मूर्तियां बनी है। उनके दोनों ओर चरण हैं। मन्दिर के अन्दर आठ स्तम्भों का दालान हैं। उसके आगे जाकर सात फीट ऊँची श्यामवर्ण श्री आदिनाथ जी की सुन्दर दिगम्बरीय प्रतिमा विराजमान है। वेदो और शिखरों पर नक्कासी का काम दर्शनीय है । वहींसे एक मील दूर भगवान् की चरणपादुकाये हैं। यही से धूलियां भील के स्वप्न के अनुसार यह प्रतिमा जमीन से निकाली गई थी। धूलियां भील के नाम के कारण ही यह गांव धुलेव कहलाता है। वीजोल्या-पार्श्वनाथ बीजोल्या ग्रामके समीप ही आग्नेय दिशा में श्रीमत्पार्श्वनाथ स्वामी का अतिशयक्षेत्र प्राचीन और रमणीय हैं । सैकड़ों स्वाभाविक चट्टानें बनी हुई है। उनमें से दो चट्टानों पर शिलालेख और उन्नतशिखर पुराण नामक ग्रन्थ अंकित है । यहां एक कोट के अन्दर पार्श्वनाथ जी के पांच दि. जैन मन्दिर हैं। इन मन्दिरों को अजमेर के चौहान वंशी राजा पृथ्वीराज द्वि० और सोमेश्वर ने
SR No.010323
Book TitleJain Tirth aur Unki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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