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________________ [८६ ] उसमें राजुल जी की मूर्ति पाषाण में उकेरी हुई है और चरण पादुकायें है। ___ यहाँ से दूसरी टोंक पर जाते हैं जो अम्बा देवी की टोंक कहलाती है ।+ यहां पर अम्बा देवी का मन्दिर है, जो मूलतः जैनियों का है। अम्बिका देवी नेमिनाथ की यक्षिणी है। अब इसे हिन्दू और जैनी दोनों पूजते हैं। यहां पर चरण पादुकायें भी है। मागे तीसरी टोंक पाती है, जिस पर नेमिनाथ स्वामी के चरणचिन्ह हैं। यहीं बाबा गोरखनाथ के चरण और मठ है, जिसे जैनेतर पूजते हैं। इस टोंक से लगभग चार हजार फीट नीचे उतर कर चौथी टोंक पर जाना होता है । इस पर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ नहीं हैं-बड़ी कठिन चढ़ाई है। सुना था कि इस पर भी सीढ़ियां बनेंगी। टोंक के ऊपर एक काले पाषाण पर श्री नेमिनाथ जी की दिगम्बर प्रतिमा और पास ही दूसरी शिला पर चरण चिन्ह हैं । सं० १२४४ का लेख है। कुछ लोगों का ख्याल है कि यहीं से नेमिनाथ स्वामी मुक्त हुए थे और कुछ लोग कहते है कि पांचवीं टोंक से नेमिनाथ स्वामी मोक्ष गये यह स्थान शम्बु-प्रद्युम्न नामक यादव कुमारों का निर्वाण स्थान है। इस टोंक से नीचे उतर कर फिर पांचवीं टोंक पर जाना होता है। यह शिखर सबसे ऊँचा और अतीव सुन्दर है। इस पर से चहुँ ओर प्राकृतिक दृश्य नयनाभिराम दिखाई पड़ता है । टोंक पर एक मढ़िया के नीचे नेमिनाथ +पुन्नाट संघी जिनसेन ने अपने हरिवंश पुराण में गिरिनार की सिंहवाहिनी या अम्बा देवी का उल्लेख किया है। और उसे विघ्नों का नाश करने वाली शासन देवी बतलाया है। उससे प्रकट हैं कि उस समय भी वहां अम्बा देवी का मन्दिर था। गृहीतचक्राऽप्रतिचक्रदेवता तथोर्जयन्तालय सिंहवाहिनी। शिवाययस्मिन्त्रिहसन्निधीयतेक्वतत्रविघ्नाप्रभवन्ति शासने ॥४॥
SR No.010323
Book TitleJain Tirth aur Unki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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