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________________ . [२२] मजबूत सीढ़ियाँ गिरिनार की चारों टोंको पर लगवाई गई हैं। यहाँ से चढ़ाई शुरू होती हैं। गिरिनार महान सिद्धोत्र है । बाईसवें तीर्थङ्कर श्री नेमिनाथ जी का मोक्ष स्थान यहीं है । यहीं पर भगवान् ने तप किया थाकेवलज्ञान प्राप्त किया था और धर्मोपदेश दिया था। राजमती जी ने यहीं से सहस्राम्रवन में प्राकर उनसे घर चलने की प्रार्थना की थी। पर भगवान् के गाढ़े वैराग्य के रंग में उनका मन भी रंग गया तो यह भी आर्यिका हो, यहीं तप करने लगी थीं। श्री 'नारायण कृष्ण और बलभ्रद्र ने यहीं प्राकर तीर्थङ्कर भगवान् की वन्दना की थी। भगवान् के धर्मोपदेश से प्रभावित होकर यहीं पर श्रीकृष्ण जी के पुत्र प्रद्युम्न-शंबूकुमार आदि दि० मुनि हुए थे और कर्मों को विध्वंश कर सिद्ध परमात्मा हुए थे। गजकुमार मुनि पर सोमिल विप्र ने यहीं उपसर्ग किया था, जिसे समभाव से सहन कर वह मुक्त हुए थे। भ० नेमिनाथ के गणधर श्री वरदत्त जी भी यही से अगणित मुनिजनों सहित मोक्ष सिधारे थे। गर्ज यह है कि : गिरिनार पर्वतराज महापवित्र और परमपूज्य निर्वाणक्षेत्र हैं । . उनकी वन्दना करते हुए स्वयमेव ही प्रात्माह्लाद प्राप्त होता है भक्ति से हृदय गद्गद् हो जाता है. और कवि की यह उक्ति याद SAT गा गर्वममर्त्यपर्वत परां प्रीतिं भजतस्त्वया । भ्रम्यंते रविचंद्रमः प्रभृतयः के के न मुग्धाशयाः ॥ एको रैवतभूधरो विजयतां यदर्शनात् प्राणिनी । यांति प्राँति विवर्जिताः किल महानंदसुखश्रीजुषः ।।" भावार्थ-'हे पर्वत! गर्व मत करो सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र तुम्हारे प्रेम में ऐसे मुग्ध हुए है कि रास्ता चलना भूल गए हैं, (वह प्रदि. . . ..
SR No.010323
Book TitleJain Tirth aur Unki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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