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________________ [ ५६ ] इस पर्वत के उत्तर द्वार से उतरने पर जिननाथपुर का पूर्ण दृश्य दिखाई पड़ता है। जिननाथपुर को होयसल सेनापति गंगराज ने सन् १११७ ई० में बसाया था। सेनापति रेचिमय्या ने यहां पर एक अतीव सुन्दर 'शान्तिनाथबस्ती' नामक मन्दिर बनवाया था। यह मन्दिर होयसल शिल्पकारी का अद्वितीय नमूना है। इसके नक्काशीदार स्तम्भों में मणियों की पच्चीकारी का काम दर्शनीय है। स्तम्भ भी कसौटी के पत्थर के हैं। इसके दर्शन करके हृदय प्रानन्द विभोर होता है और मस्तक गौरव से स्वयमेव ऊंचा उठता हैं । जैनधर्म का सजीव प्रभाव यहाँ देखने को मिलता है। इसी गांव में दूसरे छोर पर तालाब के किनारे 'मोगलबस्ती नामक मन्दिर हैं, जिसकी प्राचीन प्रतिमा खण्डित हुई तालाब में पड़ी है। नई प्रतिमा विराजमान की गई हैं। इसके अतिरिक्त श्रवणबेलगोल गांवमें भी कई दर्शनीय जिन मंदिर हैं। गांव भर में 'भण्डारी-बस्ती' नामक मन्दिर सबसे बड़ा है। इसके कई गर्भ गृह में एक लम्बे अलंकृत पादपीठ पर चौबीस तीर्थकरों की खड्गासन प्रतिमायें विराजमान हैं। इसके द्वार सुन्दर हैं । फर्श बड़ी लम्बी २ शिलानों का बना हया है। मन्दिर के सामने एक अखण्ड शिला का बड़ा सा मानस्तम्भ खड़ा है। होयसल नरेश नरसिंह प्रथम के भण्डारी ने यह मन्दिर बनवाया था। राजा नरसिंह ने इस मन्दिर को सवणेरु गांव भेंट किया था . और इसका नाम भव्यचूड़ामणि' रखा था। 'मक्कनबस्ती' नामक मन्दिर श्रवणवेलगोल में होयसल शिल्प शैली का एक ही मंदिर है। इसमें सप्तफणमंडित भ० पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान हैं । इसके स्तम्म-छत और दीवारें शिल्पकला के अपूर्व नमूने हैं। इस मन्दिर को ब्राह्मण सचिव चन्द्रमो. लिकी पत्नी अचियवकदेवी ने सन् ११८१ ई० में बनवाया था। वह स्वयं जैनधर्मभक्त.थीं। उनका अंतर्जातीय विवाह हुआ था।
SR No.010323
Book TitleJain Tirth aur Unki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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