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________________ [४८ ] जिन मूर्तियां, गुफा और स्तम्भ निर्माण कराये थे और कई धर्मोत्सव किए थे। यहाँ की सब मूर्तियाँ दिगम्बर हैं। सम्राट खारबेल के समय से पहले ही यहाँ निर्ग्रन्थ श्रमण संघ विद्यमान था। निर्ग्रन्थ (दिग०) मुनिगण इन गुफाओं में रहते और तपस्या करते थे। स्वयं सम्राट खारबेल ने इस पर्वत पर रहकर धार्मिक यम नियमों का पालन किया था। उनके समय में अङ्ग ज्ञान विलुप्त हो चला था। उसके उद्धार के लिए उन्होंने मथुरा, गिरिनार और उज्जैनी आदि जैन केन्द्रोंके निर्ग्रन्थाचार्यों को संघ सहित निमन्त्रित किया था। निर्ग्रन्थ श्रमण संघ यहाँ एकत्र हुआ और उपलब्ध द्वादशाङ्गवाणी के उद्धार का प्रशंसनीय उद्योग किया था। इन कारणों की अपेक्षा कुमारी पर्वत एक महा पवित्र तीर्थ हैं और पुकार-पुकार कर यही बताता है कि जैनियों! जिनवाणी की रक्षा और उद्धार के लिए सदा प्रयत्नशील रहो। खण्डगिरि पर्वत १२३ फीट उँचे घने पर्वतों से लदा हुआ है खड़ी सीढ़ियों से ऊपर जाया जाता है। सीढ़ियों के सामने ही 'खण्डगिरिगुफा' है जिसके नीचे ऊपर पांच गुफायें और बनी हैं, 'अनन्तगुफा' में १॥ हाथ की कायोत्सर्ग जिन प्रतिमा विराजमान है। पर्वत के शिखर परएक छोटा औरएक बड़ा दि० जैन मंदिर है। छोटा मंदिर हाल का बना हुआ है परन्तु उसमें एक प्राचीन प्रतिता प्रातिहार्य युक्त विराजमान है। बड़ा मन्दिर और दो शिखरों वाला है इस मंदिर को करीब २०० वर्ष पहले कटक के सुप्रसिद्ध दिग० जैन श्रावक स्व० चौधरी मंजूलाल परवा र ने निर्माण करवाया था, परन्तु इस मंदिर से भी प्राचीन काल की जिन प्रतिमायें विराजमान हैं। मंदिर के पीछे की ओर सैकड़ों भग्नावशेष पाषाणादि पड़े हैं, जिनमें चार प्रतिमायें नन्दीश्वर की बताई जाती थीं। इस स्थान को 'देव सभा' कहते हैं। 'पाकाश गंगा' नामक जल से भरा कुण्ड है। इसमें मुनियों के
SR No.010323
Book TitleJain Tirth aur Unki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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