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________________ [ ४१ ] जहां पर तीन मन्दिर हैं। चौथे पहाड़ से उतर कर पाँचवें पहाड़ के रास्ते में सोनभण्डार गुफा मिलती है। यहाँ दीवालों पर प्रतिमायें बनी हई हैं। अंतिम पर्वत वैभारगिरि है, जिस पर पांच मन्दिर हैं। यहाँ एक विशाल प्राचीन मंदिर निकला है जिसमें २४ कमरे बने हुए हैं। यह लगभग १२०० वर्ष प्राचीन है । मूर्तियाँ विराजमान हैं। इन सब मंदिरों के दर्शन करके यहाँ से एक मील दूर गणधर भ० के चरणों को वंदना करने जावे । पहाड़ की तलहटी में सम्राट श्रेणिक के महलों के निशान पाये जाते हैं। उन्होंने राजगृह अतीव सुंदर निर्माण कराया था। यहाँ से १२ मील पावापुर बस में जावे। पावापुर पावापुर तीर्थकर भ० महावीर निर्वाग धाम है अतः यह पावापुर अन्तिमतीर्थ कर भ० महावीर का निर्वाणधाम है अत: यह पवित्र और पूज्य तीर्थ स्थान है। इसका प्राचीन नाम अपापापुर (पुण्यभूमि) था । भ० महावीर ने यहीं गेग साधा और शेष अघातिया कर्मों को नष्ट करके मोक्ष प्राप्त किया था। उनका यह मन्दिर 'जलमंदिर' कहलाता हैं और तालाब के बीच में खड़ा हुआ अति सुन्दर लगता है। इनमें भ० महावीर, गौतम स्वामी और सुधर्मस्वामी के चरण चिन्ह है। इसके अतिरिक्त ८ मंदिर एक स्थान पर हैं। इन सबके दर्शन करके यहां से १३ मील दूर गुणावा तीर्थ जाना चाहिये। गुणावा कहा जाता है कि गुणावा वह पवित्र स्थान है जहाँ से इन्द्र. भूति गौतमगणधर मुक्त हुये थे । यहाँ एक नवीन मन्दिर है उसके साथ धर्मशाला है । दूसरा मंदिर तालाब के मध्य बना हुमा सुहावना लगता हैं। मंदिर में गणधर के चरण हैं। यहाँ से डेढ़ मील
SR No.010323
Book TitleJain Tirth aur Unki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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