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________________ [२७] शील हुआ। फीरोजशाह, अकबर प्रादि बादशाहों को जैन गुरुषों में अहिंसा का उपदेश दिया और उनसे सम्मान पाया। मुस्लिम कालके बने हुए लाल मन्दिर, धर्मपुरा का नया मंदिर आदि दिव्य जैन मन्दिर दर्शनीय हैं । कुतुब की लाट, जन्तर-मन्तर, राष्ट्रपति भवन, लोकसत्ता भवन, राष्ट्रीय संग्रहालय आदि योग्य स्थान हैं। यहाँ से मेरठ पहुंचे। ॐ हस्तिनापुर (मेरठ) मेरठ उत्तरीय रेलवे का मुख्य स्टेशन है। जैनों की काफी संख्या है-कई दर्शनीय जिन मन्दिर हैं। मेरठ के मवाना मोटर अड्डे से २२ मील जाकर हस्तिनापुर के दर्शन करना चाहिए। यह तीर्थ वह स्थान है जहाँ इस युग के आदि में दानतीर्थ का अवतरण हुआ था- आदि तीर्थङ्कर ऋषभदेव को इक्षुरस का आहार देकर राजा श्रेयांस ने दानकी प्रथा चलाई थी। उपरान्त यहां श्री शांति नाथ, कुन्थुनाथ और अरहनाथ नामक तीन तीर्थङ्करों के गर्भ, जन्म, तप और ज्ञान कल्याणक हुए थे। इन तीर्थंकरों ने छः खण्ड पृथ्वी की दिग्विजय करके राजचक्रवर्ती की विभूति पाई थी किन्तु उसको तृणवत् त्याग कर वह धर्म चक्रवर्ती हुए। यही इस तीर्थ का महत्व है कि वह त्याग धर्म की शिक्षा देता है। श्री मल्लि नाथ भगवान् का समवशरण भी यहाँ आया था। बलि आदि मंत्रियों ने राज्य पाकर अंकचनाचार्य और उनके ७०० मनियों पर यहीं 'उपसर्ग किया था। जिसे विष्णुकुमार मुनि ने वामन रूप धारण कर दूर किया। तभी से रक्षा बन्धन पर्व प्रारम्भ हुमा । कौरव पाण्डव यही हुए थे। दिल्ली के राजा हरसुखराय जी, जो शाही खजांची और धर्मात्मा थे उनका बनवाया हुमा एक बहुत बड़ा रमणीक दि० जैन मंदिर मौर धर्मशाला है। तीनो भगवानोंकी प्राचीन नशियाँ भी हैं जिनमें चरण-चिह्न विराजमान हैं। यहाँ कार्तिक मष्टाहिका पर्व पर मेला और उत्सव होता है। इसके अलावा फाल्गुनी प्रष्णन्हिका मोर ज्येष्ठ कृष्णा १४ को भी
SR No.010323
Book TitleJain Tirth aur Unki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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