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________________ [ १०३ ] है। एक मूर्ति २५ फीट ऊँची हैं । यह सब ही मूर्तियां पुरातत्व एवं कला की दृष्टि से विशेष महत्व रखती है यहां भट्टारक कमलकीर्ति तथा पद्मकीर्ति के स्मारक वि० सं० १७१७ और १७३६ के हैं किन्तु परमानन्द शास्त्री ने भ० पद्मकीर्ति की चरण पादुका पर निम्न प्रकार का लेख पढ़ा है: “सं० १११३ मार्गशीर्ष चतुर्दश्याँ बुधवासरे भट्टारक श्री पद्मकीर्ति देवा वलादागत तेषां सिधपादुका युग्लम् ।” बूढ़ी चन्देरी वर्तमान चन्देरी से हैं मील दूर बूढ़ी चन्देरी है। मार्ग पुगम है। वहां पर प्रति प्राचीन प्रतिशययुक्त मनोज्ञ भ्रष्ट प्रातिहार्ययुक्त सैकड़ों जिन विम्ब हैं। कला एवं वीतरागता की दृष्टि ये मूर्तियां अपना अद्वितीय स्थान रखतीं हैं । किन्हीं - किन्हीं मूर्तियों की बनावट भी महत्वपूर्ण है । प्रत्येक मंदिर की छत केवल एक पत्थर की बनी हुई है। किसी-किसी शिला का परिमाण २०० मन से भी अधिक है। इन मंदिरों व मूर्तियों के निर्माणकाल का तो कोई लिखित आधार उपलब्ध नही हुआ है, हां, यह अवश्य कि ११ वीं शताब्दी में प्रतिहार वंशीय राजा कीर्तिपाल ने इस वन्देरी को वीरान करके वर्तमान चंदेरी स्थापित की। इस क्षेत्र जीर्णोद्धार का कार्य दि० जैन एसो० चंदेरी द्वारा सं० २००१ प्रारम्भ हुआ। दो वर्ष में कोई शिला लेख प्राप्त नही हुआ । कड़ो मूर्तियां जो यत्र तत्र बिखरी पड़ी थीं प्रथवा भूमि के गर्भ थी, पत्थरों एवं चट्टानों के नीचे दबी पड़ी थीं उनको एकत्रित के संग्रहालय में रखा गया है। कई मन्दिरों का जीर्णोद्धार हो का है। धर्मशाला बनवाई जा चुकी है तथा बावड़ी भी खुदवाई चुकी है। धूवोनजी चंदेरी से 8 मील की दूरी पर थूवोनजी क्षेत्र है। इसका
SR No.010323
Book TitleJain Tirth aur Unki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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