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________________ h [ १०० ] बहती हैं। पर्वत के पास एक गुफा है-वहीं निर्वाण स्थान बताया जाता है। यहां से नैनागिरि जावे। - नैनागिरि ( रेशिंदीगिरि).. - नैनागिरि गांव से पर्वत दो फरलाङ्ग दूर है । यहाँ एक शिखर बन्द दि० जैन मन्दिर पर्वत के शिखर पर और ६ मन्दिर नीचे हैं। एक धर्मशाला है। यहां पर भ० पार्श्वनाथ का समवशरण प्राया था और यहां से वरदत्तादि मुनिगण मोक्ष पधारे हैं । सबके पुराना मन्दिर १७ वीं शताब्दी का बना हुआ है। वहाँ पार्श्वनाथ की विशाल मूर्ति विराजमान की गई है जो कलात्मक और दर्शनीय है ! सं० १९२५ में इस क्षेत्र का जीर्णोद्धार स्व० चौधरी श्यामलाल जी ने कराया था। सन् १८८६ में यहां पर एक लाख जैनीएकत्रित हुये थे। यहाँ से खजुराहो जावे। खजुराहो अतिशय क्षेत्र यहां प्राचीन २५ मन्दिर हैं, जिनमें अतीव मनोज्ञ प्रतिमाये विराजमान हैं। मन्दिरों की लागत करोड़ों रुपयों की अनुमान की जाती हैं । शिलालेखों में इसका नाम 'खजूरबाहक' हैखजूरपुरके नाम से भी खजुराहा प्रसिद्ध था। कहते हैं कि नगरकोट के द्वार पर सुवर्णरंग के दो खजूर के वृक्ष थे । उन्हीं के कारण वह खजूरपुर अथवा खजुराहा कहलाता था । यह नगर बुन्देलखण्ड की राजधानी था औज चन्देल वंश के राजाओं के समय में चरमोन्नति पर था। उसी समय के बने हुए यहां अनेक नयनाभिराम मन्दिर और मूर्तियाँ हैं । जैन मन्दिरों में जिननाथ जी का मन्दिर चित को विशेष रीति से आकर्षित करता है। इस मन्दिर को सन् ६५४ ई० में पाहिल नामक महानुभाव ने दान दिया था। इस मन्दिर के मण्डपों की छत में शिल्पकारी का अद्भुत काम दर्शनीय है। कारीगर ने अपने . ...
SR No.010323
Book TitleJain Tirth aur Unki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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