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________________ .[१७]] १२ दि. जैन मन्दिर हैं। अजायबघर, चिड़ियाघर, मिल आदि देखने योग्य स्थान हैं। यहाँ से कारंजा होकर ऐलिचपुर जाना चाहिए । ऐलिचपुर जिन मन्दिर हैं । ऐलिचपुर और परतवाड़ा से मुक्तागिरि पाठ मील है। मुक्तागिरि यहाँ तलहटी में एक जैन धर्मशाला और एक मन्दिर है। यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य अपूर्व है। तलहटी से एक मील की चढ़ाई है। पहाड़ पर सीढ़ियां बनी हुई हैं। कहते हैं कि इस स्थान पर मेंढ़ देव ने बहुत से मोतियों की वर्षा की थी, इसलिए इसका नाम मुक्तागिरि पड़ा है। वर्षा स्थल ४० वें मन्दिर के पास है परन्तु यह ज्यादा उपयुक्त है कि निर्वाण क्षेत्र होने के कारण यह मुक्तागिरि कहलाया। पर्वत पर कुल ५२ मन्दिर प्रति मनोज्ञ हैं। अधिकाँश मंदिर प्रायः १५ वीं शताब्दी के या बाद के बने हुये है। अचलापुरी के एक ताम्रपत्र में इस पवित्र स्थान पर सम्राट श्रोणिक बिम्बसार द्वारा गुफा मन्दिर बनवाने का उल्लेख है। यहां ४० वें नम्बर का मन्दिर पर्वत के गर्भ में खुदा हुया प्राचीन है। वही मन्दिर 'मेंढ़गिरि' नाम से प्रसिद्ध है, इसमें नक्काशी का काम बहुत अच्छा है। स्तम्भों और छत की रचना अपूर्व है। श्री शान्तिनाथ जी की प्रतिमा दर्शनीय हैं। इस मंदिर के समीप लगभग २०० फीट की ऊँचाई से पानी की धारा पड़ती है, जिससे एक रमणीय जलप्रपात बन गया है। यहाँ के जलप्रपातों के कारण यह क्षेत्र रमणीय दिखता है। पार्श्वनाथ भगवान का नं. १ का मन्दिर भी प्राचीन और दर्शनीय शिल्प का नमूना है। यह प्रतिमा सप्तफणमंडित प्राचीन है। इस पर्वत से साढ़े तीन करोड़ मुनि मुक्ति पधारे हैं। यहाँ पर निरन्तर केशर की वर्षा होती थी ऐसा कहते हैं। यहाँ से अमरावती होकर भातकुली जावे। अमरावती में १४ मन्दिर व २२ चैत्यालय हैं।
SR No.010323
Book TitleJain Tirth aur Unki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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