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________________ है तो दूसरा धर्म गौण है। किन्तु अन्य तीर्थ-शासन निरपेक्ष एक-एफ नित्यत्व या अनित्यत्य माटिका हो प्रतिपादन करनेसे समस्त धर्मों-उस एक-एक धर्मके अविनाभावी गेप धर्मोसे शून्य हैं और उनके अभावमें उनके अविनाभावी उस एक-एक धर्मसे भी रहित हैं। अत मापका ही अनेकान्तशामनस्प तीर्थ मर्व टु खोका अन्त करनेवाला है, किसी अन्यके द्वारा अन्त (नाश) न होने वाला है और सबका कल्याणकर्ता है।' आचार्य अमतचन्द्र के शब्दोमें हम इस 'अनेकान्त' को, जिसे 'सर्वोदयतीर्थ पाहकर उसका अचिन्त्य माहात्म्य प्रकट किया गया है, नमस्कार करते और मगलकामना करते है कि विश्व इगको प्रकारापूर्ण एव आह्लादजनक शीतल छायामें आकर सुख-शान्ति एव सदृष्टि प्राप्त करे । परमागमस्य बीज निषिद्व-जात्यन्ध-सिन्धुर-विधानम् । सकल-नय-विलसिताना विरोधमथन नमाम्यनेकान्तम् ।।
SR No.010322
Book TitleJain Tattvagyan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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