SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४ नियमसार --- इसमें १२ अधिकार और १८७ गाथाएँ हैं । इसपर पद्मप्र ममलघारीदेवकी सस्कृतटीका है, जो मूलको तो स्पष्ट करती ही है, सम्वद्ध एव प्रसंगोपात्त स्वरचित एव अन्य ग्रन्थकारोके श्लोकोका भी आकर है । इस ग्रन्थ में भी समयसार की तरह आत्मतत्त्वका प्रतिपादन है । मुमुक्षुके लिये यह उतना ही उपयोगी और उपादेय है जितना उक्त समयसार । ५ दसण - पाहुड - इसमें सम्यग्दर्शनका २६ गाथाओ में विवेचन है । इसकी कई गाथाएँ तो सदा स्मरणीय है । यहाँ निम्न तीन गाथाओ को देनेका लोभ सवरण नही कर सकता 1 दसणभट्टा भट्टा दसणभट्टस्स णत्थि सिज्झति चरियभट्टा दसणभट्टा ण समत्तरयणभट्टा जाणता बहुविहाइ आराहणाविरहिया भमति तत्थेव सम्मत्तविरहियाण सुट्ठ वि उग्ग तव चरताण । ण लहति बोहिबाह अवि वाससहस्सकोडीहि ||५|| तत्येव ॥ ४ ॥ णिव्वाण | सिज्झति ॥३॥ सत्थाइ । ( इन गाथाओ में कहा गया है कि 'जो सम्यग्दर्शनसे भ्रष्ट हैं वे वस्तुत भ्रष्ट ( पतित) हैं, क्योकि सम्यग्दर्शनसे भ्रष्ट मनुष्यको मोक्ष प्राप्त नही होता । किन्तु जो सम्यग्दर्शनसे सहित है और चारित्र से भ्रष्ट हैं उन्हें मोक्ष प्राप्त हो जाता है । पर सम्यग्दर्शनसे भ्रष्ट सिद्ध नही होते । जो अनेक शास्त्रोके ज्ञाता हैं, किन्तु सम्यक्त्व - रत्नसे च्युत है वे भी आराधनाओोसे रहिन होनेसे वही वही ससारमें चक्कर काटते है । जो करोडो वर्षों तक उग्र तप करते हैं किन्तु सम्यग्दर्शन से रहित हैं वे भी बोधिलाभ (मोक्ष) को प्राप्त नही होते । कुन्दकुन्दने 'दसण- पाहुड' में सम्यग्दर्शनका महत्त्व निरूपित कर उसकी प्राप्तिपर ज्ञानी और साघु दोनो के लिए बल दिया है । ६ चारित पाहुड - इसमें ४४ गाथाओके द्वारा मनुष्य जीवनको उज्ज्वल बनाने वाले एव मोक्षमार्ग के तीसरे पाये सम्यक्चारित्रका अच्छा निरूपण है । ७ सुत्तपाहुड -- इसमें २७ गाथाएँ है । उनमें सूत्र (निर्दोषवाणी) का महत्त्व और तदनुसार प्रवृत्ति करनेपर बल दिया गया है । ८ बोधपाहुड - इसमें ६२ गाथाएँ हैं, जिनमें उन ११ बातोका निरूपण किया गया है, जिनका बो मुक्ति लिए आवश्यक है । ९. भावपाहुड - ६समें १६३ गाथाओ द्वारा भावो - आत्मपरिणामोकी निर्मलताका विशद निरूपण किया गया है । १० मोक्खपाहुड - इसमे १०६ गाथाएँ निबद्ध हैं । उनके द्वारा आचार्यने मोक्षका स्वरूप बतला हुए बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा इन तीन आत्मभेदोका प्रतिपादन किया है । ११ लिंगपाहुड – इसमें २२ गाथाएँ है । इन गाथाओ में मुक्तिके लिए आवश्यक लिंग (वेष ), जो द्रव्य और भाव दो प्रकार का है, विवेचित है । १२ सीलपाहुड - ४० गाथाओ द्वारा इसमें विषयतृष्णा आदि अशीलको वन्ध एव दुखका कारण बतलाते हुए जीवदया, इन्द्रिय-दमन, सयम आदि शीलो (सम्प्रवृत्तियो ) का निरूपण किया गया है । - २९३ -
SR No.010322
Book TitleJain Tattvagyan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy