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________________ है, क्योकि वे उसे वेद-प्रभव बतलाते है। कुछ भी हो, वे किसी पुरुषको स्वय धर्मज्ञ स्वीकार नहीं करते। वे मन्वादिको भी वेद द्वारा हो धर्माधर्मादिका ज्ञाता और उपदेष्टा मानते हैं। बौद्ध दर्शनमे सर्वज्ञता बौद्ध दर्शनमें अविद्या और तष्णाके क्षयसे प्राप्त योगीके परम प्रकर्षजन्य अनुभव पर बल दिया गया हैं और उसे समस्त पदार्थोंका, जिनमें धर्माधर्मादि अतीन्द्रिय पदार्थ भी सम्मिलित है, साक्षात्कर्ता कहा गया है । दिङ्नाग आदि बौद्ध-चिन्तकोने सूक्ष्मादि पदार्थों के साक्षात्करणरूप अर्थ में सर्वज्ञताको निहित प्रतिपादन किया है । परन्तु बुद्धने स्वय अपनी सर्वज्ञतापर बल नही दिया। उन्होने कितने ही अतीन्द्रिय पदार्थोंको अव्याकृत (न कहने योग्य) कह कर उनके विषयमें मौन ही रखा । पर उनका यह स्पष्ट उपदेश था कि धर्म जैसे अतीन्द्रिय पदार्थका साक्षात्कार या अनुभव हो सकता है। उसके लिए किसी धर्म-पुस्तककी शरणमें जानेकी आवश्यकता नही है। बौद्ध तार्किक धर्मकीतिने भी बुद्धको धर्मज्ञ ही बतलाया है और सर्वज्ञताको मोक्षमार्गमें अनुपयोगी कहा है। तस्मादनुष्ठानगत ज्ञानमस्य विचार्यतास। कीट-सख्यापरिज्ञाने तस्य न क्वोपयुज्यते ॥ हेयोपादेयतत्त्वस्य साभ्युपायस्य वेदक । य प्रमाणमसाविष्टो न तु सर्वस्य वेदक. ॥ -धर्मकीर्ति, प्रमाणवा ३१, ३२ । उपदेशो हि बुद्धादेधमधिर्मादिगोचर । अन्यथा चोपपद्येत सर्वज्ञो यदि नाभवत् ।। बुद्धादयो ह्यवेदज्ञास्तेषा वेदादसभव । उपदेश कृतोऽतस्तैामोहादेव केवलात् ।। येऽपि मन्वादय सिद्धा प्राधान्येन त्रयी विदाम् । श्रयीविदाश्रितग्रन्थास्ते वेदप्रभवोक्तय ।। नर कोऽप्यस्ति सर्वज्ञ स च सर्वज्ञ इत्यपि । साधन यत्प्रयुज्यत प्रतिज्ञामात्रमेव तत् ॥ सिसाधयिषितो योऽर्थ सोऽनया नाभिधीयते । यस्तूच्यते न तत्सिद्धी किंचिदस्ति प्रयोजनम् ।। यदीयागमसत्यत्वसिद्धो सर्वज्ञतेष्यते । न सा सर्वज्ञसामान्यसिद्धिमात्रेण लभ्यते ।। यावबुद्धो न सर्वज्ञस्तावत्तद्वचन मृषा । यत्र क्वचन सर्वज्ञे सिद्ध तत्सत्यता कुत ॥ अन्यस्मिन्न हि सर्वज्ञे वचसोऽन्यस्य सत्यता । सामानाधिकरण्ये हि तयोरगागिता भवेत् ।। ये कारिकाएँ कुमारिलके नामसे अनन्तकीर्तिने ब. स सि में उद्धृत की है। देखिए, मज्झिमनिकाय २-२-३ के चूलमालुक्य सूत्रका सवाद । २
SR No.010322
Book TitleJain Tattvagyan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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