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________________ पान, जीवन और जगत् प्रकार अलग-अलग हो सकते हैं, यह दिखाना दर्शन का मुख्य प्रयोजन । दूसरे शब्दों में ग्रात्मा अपने असली रूप में किस प्रकार या सकती है, इसका दिग्दर्शन कराना दर्शन का ध्येय है । बुद्ध की शिक्षाओं का सार भी यही है कि दुःख से कैसे मुक्ति मिले । पांच स्कन्धों की परिसमाप्ति हो दुःखमुक्ति है । इस परिसमाप्ति का मार्ग बतांना दर्शनशास्त्र का ध्येय है । सांख्य की मान्यता के अनुसार श्राध्यात्मिक, श्राधिदैविक और ग्राधिभौतिक- इन तीन प्रकार के दुःखों की श्रात्यन्तिक निवृत्ति कैसे संभव है ? इस बात की खोज करने के लिए दर्शन का प्रादुर्भाव होता है। योगदर्शन भी इसी बात का समर्थन करता है । वह क्रिया-पक्ष पर विशेष भार देता है । न्यायदर्शन का प्रयोजन श्रपवर्ग प्राप्ति है । दुःख और उसके कारणों की परम्परा का क्षय करना उसका ध्येय है । दुःख के कारणों की परम्परा का क्षय होने पर अपवर्ग ग्रर्थात् निःश्रेयस मिलता है । वैशेषिक लोग भी निःश्रेयस की प्राप्ति को जीवन-लक्ष्य मानते हैं । सांसारिक अभ्युदय और पारमार्थिक निःश्रेयस इन दोनों की प्राप्ति ही दर्शन का प्रयोजन है। मीमांसक भी निःश्रेयस की प्राप्ति को महत्त्व देते हैं । वे कहते हैं कि धर्म से पुरुष को निःश्रेयस की प्राप्ति होती है, ग्रतः धर्म श्रवश्य जानना चाहिए। धर्म के स्वरूप का ठीक ठीक ज्ञान करना- इसी का नाम दर्शन है । वेदान्त का प्रयोजन ब्रह्मज्ञान है । यही सबसे बड़ा सुख है, यही सबसे बड़ा तत्त्व है | इस तत्त्व का साक्षात्कार करना - ब्रह्ममय हो जाना, यही वेदान्त को इष्ट है । 1 दर्शन और जीवन : - ३७ जीवन के साथ दर्शन का क्या सम्बन्ध है, इसका ठीक-ठीक उत्तर प्राप्त हो जाने पर हम यह सहज ही में समझ सकते हैं कि जीवन में दर्शन का क्या महत्त्व है । जब हम यह मानते हैं कि मनुष्य का स्वभाव सोचना या चिंतन है घथवा यों कहिए कि चिन्तन से ही मनुष्य सचमुच मनुष्य बनता है, चिन्तन ही एक ऐसा विशेष गुरण है, जो मनुष्य की वास्तविक रूप में मनुष्य बनाता है तो यह समझना कठिन नहीं है कि जीवन और दर्शन कितने समीप हैं । जबतक चिन्तन या .
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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