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________________ संख्या २५५ 6 २५७ २५८ ... - : : २६२ २७३-३२४ २७७ २८० ... २८३ .... ... -ज्ञान का प्रामाण्य प्रमाण का फल प्रमाण के भेद प्रत्यक्ष परोक्ष ६-स्याद्वाद .. विभज्यवाद और अनेकान्तवाद ... एकान्तवाद और अनेकान्तवाद ... लोक की नित्यता अनित्यता सान्तता और अनन्तता जीव की नित्यता और अनित्यता ... सान्तता और अनन्तता पुद्गल की नित्यता अनित्यता एकता और अनेकता अस्ति और नास्ति प्रागमों में स्याद्वाद अनेकान्तवाद और स्याद्वाद स्थाद्वाद और सप्तभङ्गी भङ्गों का आगमकालीन रूप सप्तभङ्गी का दार्शनिकरूप दोप-परिहार ७-नयवाद द्रव्याथिक और पर्यायाथिक दृष्टि ... द्रव्यायिक और प्रदेशार्थिक दृष्टि व्यावहारिक और नैश्चयिक दृष्टि .." प्रर्धनय और गव्दनय नय के भेद नयों का पारस्परिक सम्बन्ध २८३ २८५ २८७ २८८ २६० २६१ ::::::::::::::::::::: ... २६४ ... २६६ .... ३०० ३०८ ३१४ ३२५-३४२ ३२८ ... ३२६ ... ३३१ ... ३३२
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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