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________________ २५० जैन-दर्शन प्रकार से गिनाए हैं। दो अवयवों की गणना में उदाहरण का नाम है, हेतु का नहीं । भद्रबाहु ने कितने अवयव माने हैं और वे कौन कौन से हैं, इसकी गणना इस प्रकार है : दो-प्रतिज्ञा, उदाहरण तीन-प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण पाँच–प्रतिज्ञा, हेतु, दृष्टान्त, उपसंहार, निगमन (१) दस-प्रतिज्ञा, प्रतिज्ञाविशुद्धि, हेतु, हेतुविशुद्धि, दृष्टान्त, दृष्टान्तविशुद्धि, उपसंहार, उपसंहारविशुद्धि, निगमन, निगमनविशुद्धि (२) दस-प्रतिज्ञा, प्रतिज्ञाविभक्ति, हेतु, हेतुविभक्ति, विपक्ष, प्रतिषेध, दृष्टान्त, आशंका, तत्प्रतिषेध, निगमन। दो, तीन और पाँच अवयवों के नाम वही हैं जिनका अन्य दार्शनिकों ने उल्लेख किया है । दस अवयवों के नामों का भद्रबाहु ने स्वतन्त्र निर्माण किया है। _ उपमान -उपमान दो प्रकार का है-साधोपनीत और वैधोपनीत । साधोपनीत के तीन भेद हैं-किंचित्साधोपनीत, प्रायःसाधर्योपनीत और सर्वसाधोपनीत । किंचित् साधोपनीत-जैसा मन्दर है वैसा सर्षप है, जैसा सर्षप है वैसा मन्दर है । जैसा समुद्र है वैसा गोष्पद है, जैसा गोष्पद है वैसा समुद्र है । जैसा आदित्य है वैसा खद्योत है, जैसा खद्योत है वैसा आदित्य है। जैसा चन्द्र है वैसा कुमुद है, जैसा कुमुद है वैसा चन्द्र है। ये उदाहरण किंचित्साधोपनीत उपमान के हैं । मन्दर और सर्षप का थोड़ा सा साधर्म्य है। इसी प्रकार आदित्य ओर खद्योत आदि का समझ लेना चाहिए। १-दशवकालिकनियुक्ति, ६२ २--'प्रतिज्ञाहेतूदाहरणोपनयनिगमनान्यवयवाः'। -न्यायसूत्र १११।३२
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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