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________________ १४८ जैन-दर्शन हैं-रूपी और अरूपी। रूपी द्रव्य को पुद्गल कहा गया। अरूपी के पुनः चार भेद हुए-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, प्रद्धासमय-काल । इस प्रकार द्रव्य के कुल ६ भेद हो जाते हैं----जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और अद्धासमय । इन छ: द्रव्यों में से प्रथम पांच द्रव्य अस्तिकाय हैं और छठा अस्तिकाय नहीं है। भेद-प्रभेद का स्पष्ट विवरण इस प्रकार है : द्रव्य - १ जीव __ .:. २ अजीव रूपी २ पुद्गल . अरूपी ३ धर्म .. ४ अधर्म ५ आकाश . ६ अद्धा समय (२) . अस्तिकाय . . . अनस्तिकाय १. जीव ६. अद्धासमय . . .. २. पुद्गल ३. धर्म . . . .. . ....: . ४. अधर्म ५. आकाश १-भगवतीसूत्र २।१०।११७, स्थानांग सू०.५१४४.१.. :.::
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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