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________________ जैन दर्शन में वाकी आदर्शवाद और यह कहा जा सकता है कि यथार्थवादी दृष्टिकोण किसी पहुँच जाता है, किन्तु समर्थन करता है । जैन न हुआ भी चेतन और जड़ कम से प्रकार जैन दर्शन मूल में ताश्रित है । अनेकता के दर्शन को कदापि नीट नहीं करिना समर्थन करता है। इन वह एकता अनेकजैन कल करना, तत्त्व सत् हैं इसलिए इ और भौतिक उनय वे अनेक हैं । इस प्रकार स्वतंत्र है इसलिए I नेता वे एक है भौतिकता, चैतन्य दर्शन और श्री कित जैन कर दुखियों विचार है । कासवाद के नायिका ही की भूमिका समझने का का यथार्थवाद से समानता है ? दोनों स्पष्ट हो जाएँगीं । = जिला की މލމާ कोई उनकी किया जाय तो उसका
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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