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________________ १२० जैन-दर्शन ज्ञान होता है। प्राचार्य हेमचन्द्रकृत प्रमाणमीमांसा का अंग्रेजी अनुवाद डा० सातकौड़ी मुकर्जी और डा० नथमल टांटिया ने किया है। अनुवाद बहुत अच्छा बन पड़ा है । इसके अतिरिक्त डा० मुकर्जी की एक पुस्तक और प्रकाशित हुई है जिसका नाम है The Jaina. Philosophy of Non-absolutism. इस पुस्तक में अनेकान्तवाद का तुलनात्मक विवेचन है । सामग्री व भाषा दोनों दृष्टियों से पुस्तक श्रेष्ठ है । मुनि लब्धिसूरि ने द्वादशारनयचक्र का सम्पादन किया है। आचार्य आत्मारामजी का 'जैनागमों में स्याद्वाद' भी स्याद्वाद-विषयक आगमिक उद्धरणों का अच्छा संग्रह है । डा० नथमल टांटिया की पुस्तक Studies in Jaina Philosophy जैनदर्शन पर आधुनिक ढङ्ग की अद्वितीय पुस्तक है । यह पुस्तक जैनदर्शन के इतिहास में ही नहीं, भारतीय दर्शन के इतिहास में भी एक विशेष स्थान रखती है । इसमें अनेकान्त, ज्ञान, अविद्या, कर्म तथा योग पर विद्वत्तापूर्ण विवेचन किया गया है। इसकी शैली वहुत रोचक है । लेखक का अध्ययन विशाल तथा अनेकांगी है। विवेचन स्पष्ट तथा निष्पक्ष है । अंग्रेजी में श्री चंपतराय, श्री जुगमंदिरलाल आदि की पुस्तकें भी साधारण कोटि के पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध हुई हैं। मुनि पुण्यविजय जी ने आगम तथा साहित्य पर बहुत काम किया है। उन्होंने लीम्बड़ी, पाटन, बड़ौदा, जैसलमेर आदि कई भण्डारों को सुव्यवस्थित किया है। सम्पादन-संशोधन के लिए उपयोगी अनेक हस्तलिखित प्रतियों को सुलभ बनाया है । अनेक महत्वपूर्ण संस्कृत एवं प्राकृत के ग्रन्थों का संपादन भी किया है । ई० स० १९५० के प्रारम्भ में उन्होंने जैसलमेर पहुँचकर अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों का उद्धार किया । सैकड़ों प्राचीन ग्रन्थों के फोटो भी लिए । आधुनिक युग की प्रवृत्ति का इतना-सा विवरण काफी है । आज के बौद्धिक युग में इस प्रकार की प्रवृत्तियों के विना जैन १-विशेप जानकारी के लिए देखिये-'श्रमण' व०३ अं० १ में पं० सुखलालजी का लेख ।
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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