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________________ (११०) इस रीतिसे दूना लाभ देनेवाले पौषत्रतके लिये स्थान एकान्तमें होना चाहिये । एक स्थानपर इकठे होकर बहुन मनुष्योंका पौषध करना संघ निकालने जैसा है ! इसमें आत्माको आत्मिक विचारांसे पुष्ट करने का समय नहीं मिलता। प्राचीन समयमें प्रत्येक श्रावक अपने घरमें पौषधशालाकी कोटरी रखते थे और इस बात पर ध्यान रखा जाताथा कि, उस मकानके वायु मंडलको (याने वातावरणको) अपवित्र विचारका स्पर्श भी न होने दिया जाय। ___ आत्माकी पुष्टि करने के लिये पौषध किया जाता है; तथापि उस पौषधको पालन करने के लिये भी कुछ होना आवश्यक है। खुराक तो आत्माको भी चाहिये और पोषधको भी। क्योंकि विना खुराकके शरीर ग कोई सांचा नहीं चल सकता । पौषधकी खुराक 'भावना है। वारों भावनाओंमेंसे किसी एक भावनामें लीन-मग्न-मस्त हो जानेसे सारा दिन उसी भावनामें व्यतीत हो जायगा तो भी समय किधर गया इसका पतान लगेगा। परन्तु 'भावना तब ही होसकती है जबकि वस्तु संबंधी पढा हुभा या सुना हुआ ज्ञान अपने दिमागमें होता है। प्रथम तो गुरु महाराज के पास वस्तु संबंधी ज्ञान प्राप्त करना चाहिये । फिर भावना भाकर पौषधको दृढ करना चाहिये और पौषधसे आत्माका पोषण करना चाहिये । इस रीतिसे क्रमशः आगे बढनेवाला-चढनेवाला पुरुष देवताकी मारसे या लालचसे कभी डिगेगा नहीं। कभी भावना या व्रतको न छोडेगा । और इस प्रकारको तल्लीनताका नाम ही आनन्द है । यही मोक्षकी बानगी है।
SR No.010320
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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