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________________ ( १०६ ) ये कहकर तीनवार पैरों में पड़कर दोनों हाथ जोडकर बारबार बंदन कर देवता जीधर होकर आया था उधर चला गया। " कामदेव श्रावकने उपसर्ग मिटा जानकर काउसग्ग पाला । इसी अरसे में श्रमण भगवान श्री महावीर देव चौदह हजार साधुओं के साथ उपर बतलाये हुए उद्यानमें पधारे। इस बातको सुनते ही - मालुम होतेही कामदेवने सोचा कि, भगवानको वंदना नमस्कार करके पैौषध पारना चाहिये । शुद्ध उज्वल वस्त्र पहनकर बहुतसे मनुष्योंके परिवार सहित भगवानको वंदना करने को गया । वहां परिषद् में भगवानने धर्मकथा कही । फिर कामदेवको कहा: “ अहो कामदेव श्रावक ! आज आधी रात में देवताने पिशाच, हाथी और सांपका रूप धरकर तुम्हें तीन उपसर्ग दिये और उनको तुमने सहन किया । फिर वह * यहां पर एक बात विचारने जैसी है । प्राय: करके कसौटी मानसिक भवनपर होती है एसा यह एक दृश्यपर ले जाना जा सकता है। पहेले उपसर्ग में कामदेवके शरीरके अंगोपांग काटकर टुकडे किये थे, दूसरे उपसर्ग में शरीरको हाथीने रगदोला, और तीसरे उपसर्ग में भयंकर से भयंकर विप उसके शरीरमें व्याप्त किया । यह सब यदि मानसिक सृष्टिमें न बना हो और स्थूल सृष्टिमें ही बना हो तो कामदेवका टुकडे बना हुआ शरीर प्रातः काल में भगवान के दर्शन करने कैसे जा सके ? यह विचारवान् प्रश्न है । पापध पारे पहेले, तो थोडे घंटे में भगवान के दर्शन करने के लिये श्रावकजी गये हैं; टुकडे इकट्ठे हो कर संघ जाय यह कैसे बन पडे ? अतः एव समझा जाता है कि देवता जो कुछ परीक्षा लेते हैं - कसौटी करते हैं, वे मानसिक सृष्टि करते हैं । यद्यपि स्थूल भवनपर यह बनाव बनता हो ऐसा उस मनुष्यको भास होता है और स्थूल पीडा कीसी पीडा भी होती है तथापि वे शरीरकी स्थिति नहीं बदलती । योग मार्ग में चढनेवालेको ऐसे अनेक महा भयंकर रूप डराते हैं; इतनाही नहीं परंतु सुंदर रूपोंमें फैलाकर नीचे भी डाल देते हैं ।
SR No.010320
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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