SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१०४) डरा नहीं। उस देवने तीन बार ऐसा कहा तो भी कामदेवजीके मनके अध्यवसाय वरावर बने रहे। इससे वह देव क्रुद्ध हो कर लाल आँख कर कामदेवको झूढमें ले कर आकाशमें उछालने लगा और मूसल जैसे दांतों पर झेलने लगा। फिर भूमिपर डालकर तीन बार पैरसे रगदला । इससे कामदेवको तीव्र वेदना उत्पन्न हुई । उसको उसने समभावसे सहन करी। अपने मनके अध्यवसायको डिगने दिये नहीं। यह दूसरा प्रयोग निष्फल हुआ देखकर देव पैपिध शाला के बाहर गया और एक भयंकर काले सर्पका रूप धर आया ! वह रुप ऐसा था: उसमें बडा उग्र विष और दृष्टि विप था। शरीर मोटा और काजलके समान था । आंखें काजलके ढेर सी और प्रकाशित लाल थी। लप २ करती हुई बडी चंचल दो जीभ बाहर निकलती थी। स्त्री के चोटी समान लंबा था। चक्र जैसी वांकी और बडी मूछोंवाला उसका फण था । उसे वह चाहे जैसा फैला सकता था। उसका मणी भी वैसा ही था। ऐसा महा भयंकर रूप धारण करके लुहारकी धमणकी तरह धबधबाट करता हुआ पौषधशालामें कामदेवके पास आया और कहने लगाः" अरे कामदेव ! यदि तू ब्रतको न तोडेगा तो मैं तेरी पीठपर होकर तेरे शरीर पर चढूंगा और गले में तीन आंटे लगाकर तीव्र विषसे भरी हुई दासे तेरे हृदयमें काढूंगा। इससे तुझे बड़ी भारी वेदना होगी । आतध्यान और रौद्रध्यानसे कुसमयमें मरेगा। इस प्रकार उसने दो तीन वार कहा; परन्तु कामदेव किंचित् मात्रभी न डरा । इससे वह
SR No.010320
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy