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________________ दूंगा न दिलवाऊंगा। इसमें इतना आगार (छूट.) कि:-(१) राजाके हुकमसे. (२) समाजके हुकमसे. (३) किसी बलवानके परवश हो. (४) देवताके परवश हो. (५) मावाप या गुरुके उपसर्गकी जगह. (६) जंगलमें या अकालमें, इन २ बातेको करना पडे तो सम्यक्त्व जावे नहीं। और साधुको वन्दना नमस्कार करना, उनकी सेवा भक्ति करना, माशुक निर्दोष आहार पाणी, मेवा, मुखवास, वस्त्र, पात्र, कंबल, पाट, पाटे, स्थानक, संथारो, औषध देना. मुझे कल्पे। इस तरह व्रत अंगीकार कर तीनबार महावीर स्वामीका नमस्कार कर आनन्द दुतीपलास वनसे वाणिज्य गाम नगरमें अपने घर गया। वहांपर सब बातें अपनी शिवनन्दा भार्यासे कही और कहा "हे देवानुमिये ! तुम्ह भी श्रमण भगवान महावीरके पास जाभी और वन्दना कर श्राविका धर्म अंगीकार करो." यह सुनकर शिवनन्दाको हर्ष संतोष हुआ। वह कुटुम्बके मनुष्योंको और सेवकोको साथ लेकर जल्दी चलनेवाले लघुकरण रथमें बैठकर भगवान महावीरको वन्दना करनेको निकली । भगवान महावीरने बडी परिषद्में शिवनन्दाको धर्म कथा सुनाई, उसे सुनकर आनन्द गाथापतिकी भांति शिवनन्दाने भी बारह व्रत रुपी श्राविका धर्म अंगिकार किया। फिर जिधर होकर आईथी उधर होकर ही घर गई। एक समय गौतम स्वामी भगवान महावीर स्वामीको पूछने लगेः "हे भगवन् ! आनन्द गाथापति आपके पास दिक्षा ग्रहण करेगा?"भगवान वोलेः " हे गौत्तम! वह दीक्षा लेनेको समर्थ नहीं है."
SR No.010320
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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