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________________ (५२) रीने फल आपेछे रेवन्त, नागाधिप, पश्चिपेश अने शीतलादिनी प्रतिपाना पूजनथी पम कामिनि धायछे अने कार्मण तथा आकर्षण ( कामण टुपण ) जाणनामा पहनादिना निर्जीव पुतळा उपर जे जीवो नाम लेने विधि करेल ते जीवो ते विधिथी मूर्छित थइ जायछे. तेबीज रीत स्वदेशनी प्रतिमानी प्रचना नाम ग्रहण पूर्वक पूजा करनार कुशल पुरुष ज्ञानमय प्रभुने संप्राप्त करेछ. जेम कोइ स्वामी पोताना नोकरोने पोतानी मूर्त्तिनुं बहुमान करता जाणी तेमना उपर तुष्टिमान् थायछे तेम परमेश्वर पण तेमनी प्रतिमाना अर्चनथी अर्चित यतां मसान्न थाय छे. ___ उपर आपेलां दृष्टांतोमा अने हान्तिकमा महान् विशेष-अंतर छे. जे देवादि कहेवामां अव्या ते सर्व रागी अने' भगवान्-परमेश्वर तेत्रा नथी, तेनु केम ? त्यारे तो अतीव उत्तम. अनीहनी सेवा तो परमार्थनी सिद्धि- . माटे थायडे. जेमके स्पृहा रहित सिद्ध पुरुषनी सेवा इष्टलब्धिः . मादे थायछे. सिद्ध पुरुष तो साक्षात् वर आपेछे अने परमेश्वरनी प्रतिष्ठित प्रतिमा तो अजीव होयछे ते | आपी शके ? परिपूजनीय द्रव्यमा ए विचार जोवानो नथी. जे पूज्य होय . ते पूजायछे ज. दक्षिणावर्त (शंखादि), कामकुंभ, चिंतामणि अने चित्रावल्ली एमां कयी इंद्रियो छे के ते पूजातां लोकानुं मत-धारेलू करेछ ? जेम ए अजीव वस्तुओ दोवाथी स्पृहारहित छतों स्वभावथी प्राणीमोना कामितने परेछे तेम परमेश्वरनी प्रतिमा पण पूजातां पुण्यसिदि मादे वायछे,
SR No.010318
Book TitleJain Tattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Jain Sabha Bhavnagar
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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