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________________ (४४) पंदरमो अधिकार. O C. .1 कोइ वस्तु शरीरना वहारना भाग उपर रहेली होय तेम छतां पण जो ते दृश्य-ग्राह्य होय तो ज प्राणीओ तेने स्वइन्द्रियोवडे देखी शकेछ. जे ग्राह्य नथी तेनुं ग्रहण थतुं नथी. ते मात्र बीजाना कहेवाथी मानवामां आवेछे. अत्र दृष्टान्त. कोइ पुरुषनी गरदनना पाछला भाग उपर के पृष्ठ-वांसाना मध्य भागमां भुंग ( भमरो) अथवा स्वस्तिकादि चिह्न अथवा तिल (तल) वगेरे होय तेने ते पोतानी इंद्रियोबडे जोइ शकतो नथी. ज्यारे तेनां मातृश्री प्रमुख आप्त-वृद्धो कहेछे के 'तने अहीं भंगादि छे' त्यारे ते मानेछे. परंतु कोइ पण प्रसंगे ते स्वइन्द्रियोवडे तेने जोइ शकतो नथी. तेवीज रीते स्वर्गादि विद्यमान छतां स्वइन्द्रियोवडे ग्राह्य नहि होवाथी देखी शकाता नथी. अहीं एवी शंका नहि करवी के, जेम भुंगादिने जोनारा घणा होय छे अने नहि जोनार मात्र ते भंगादिवाळो एकलो होयछे तेवी रीते स्वर्गादिने जोनारा घणा नथी. स्वशरीरमा रहेला चिह्नने नहि जोनारना जेवा नास्तिक छे अने आप्त वचनने प्रमाण माननारा अर्थात् परभवने माननारा आस्तिको नास्तिक करतां वधारे छे. एम पण नहि कहेवू के, पृष्ठ (पीठ) उपर आवेला चिह्नतुं फळ थायछे त्यारे तेनो निश्चय थायछे तेम स्वर्ग नरकनो कोइ पण चेष्टावडे बोध थतो नथी. शैवोने मान्य शक्ति, शम्भु, गणेश, वीर वगेरे देवसमूह अने तुरुष्को-(मुसलमानो) ने पूज्य फिरस्ता, पेगंवर, पीर प्रमुख तेमनी सेवाथी थता तादृश फळबडे-लोकोक्ति प्रमाणे जाणी शकायछे ते छे के नहि ? जो छे तो ने देव छे-मयं (मनुष्य ) नथी पण कलिकालना योगयी मायः देखी शकाता नयी अने तेमनी निवासभू
SR No.010318
Book TitleJain Tattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Jain Sabha Bhavnagar
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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