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________________ (३४) इन्द्रियो तेनी ते ज छतां विशेषता शाथी थइ ? पूर्वे मन अविकारी हतुं ते पाछळथी विकारी थवाथी एटलो भेद पडयो एवो जो खुलासो करतो ए भेद शेमां थयो ? जो ए भेद मानसिक होय तो मन दृश्य नथी तेम वर्णोवडे पण ते निवेदन करी शकातुं नथी अने जे दृश्य नथी ते-नास्तिकनी मान्यता प्रमाणे छेज नहि. विकार तो साक्षात् थयो छे, ते केम थयो ? दृश्य पदार्थोमां ज जो इन्द्रियो मोह पामेछे तो कयो सत्पुरुष कहेशे के, इन्द्रियज्ञान सर्व सत्यछे ? दिव्यदृष्टि निःस्पृह उपकारी पुरुषोए जे उपदिश्युंछे ते ज सत्यछे. स्वस्थ चित्ते तत्त्वदृष्टिथी विचार करो के, ज्ञानवंते उपदेशेला *आनंद शोकादि घणा शब्दोने नास्तिक आस्तिक सरखी रीते यथार्थ मानेछे. ___*आनंद, शोक, व्यवहार, विद्या, आज्ञा, कला, ज्ञान, मन, विनोद, न्याय, अन्याय, चोरी, जारी, चार वर्ण, चार आश्रम, आचार, सत्कार, वायु, सेवा, मैत्री, यश, भाग्य, बल, महत्व, शब्द, अर्थ, उदय, भंग, भक्ति, द्रोह, मोह, मद, शक्ति, शिक्षा, परोपकार, गुण, क्रीडा, क्षमा, आलोच, संकोच, विकोच, लोच, राग, रति, दुःख, सुख, विवेक, ज्ञाति, मिय, अप्रिय, प्रेम, दिशा, देश, गाम, पुर, यौवन, वार्धक्य, सिद्धि, आस्तिक, नास्तिक, कपाय, मोष (चोरीनो माल), विषय, पराङ्मुख, चातुर्य, गांभीर्य, विषाद, कपट, चिन्ता कलंक, श्रम, गालि, लज्जा, संदेह, संग्राम, समाधि, बुद्धि, दीक्षा, परीक्षा, दम, संयम, माहात्म्य, अध्यात्म, कुशील, शील, क्षुधा, तृपा, मूल्य, मुहूंत, पर्व, सुकाल, दुष्काल, विकराल, आरोग्य, दारिद्य, राज्य, अतिषय, प्रतीति. प्रस्ताव हानि, स्मृति, वृद्धि, गृद्धि, प्रसाद, दैन्य, व्यसन, असूया (अदेखाइ), शोभा, प्रभाव, प्रभुता, अभियोग, नियोग, योग, आचरण, आकुल अने भावप्रत्ययान्त इत्यादि.
SR No.010318
Book TitleJain Tattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Jain Sabha Bhavnagar
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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