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________________ ( ३०) अगीआरमो अधिकार. सर्व विश्व निगोदना जीवोथी परिपूर्ण छे तेमां कर्मो, अन्य पुद्गलराशियो अने धर्मास्तिकायादि केवी रीते समायछे ? जेवी रीते गांधीनी दुकानमा कपूरनो गंध पसरेलो होयछे तेमां कस्तूरी तथा जायफलादि वस्तुनो गंध, पुष्पादिनो गंध, सूर्यनो तडका, थूपनो धूम, वायु, शब्द, त्रसरेणु वगेरे समायछे; जेवी रीते विचक्षण पुरुषना हृदयमां शास्त्रपुराणविद्या होयछे तेम छतां वेद, स्मृति, व्याकरण, कोप, ज्योतिष् , वैद्यक, आशिष्, राग, मंत्र, आम्नाय, ध्यान, मंत्र, तंत्र, कला, वार्ता, विनोद, स्त्रीविलास, दान, शील, तप, भाव, शान्ति, धृति, सुख, दुःख, सत्व, रज, तम, कषाय, मैत्री, मोह, मत्सर, शंका, भय, निर्भय, आधि वगेरे समाय छे; अने जेवी रीते वनखंड-जंगलमा रेणु, त्रसरेणु सूर्यनो तडको, अग्निनो ताप, पुप्पोनो गंध, वायु, पशुपक्षीना शद्व, वादिनना नाद, पांदडाना मर्मर (खडखडाट) वगैरे सर्व समाइ जायछे तथापि अवकाश रहेछे तेवीज रीते सर्व लोक निगोदथी सदा परिपूर्ण छतां सर्व द्रव्यो तेमां समायछे एटलुंज नहि पण द्रव्योथी निचित (खीचोखीच भरायलं) छतां तादृश अवकाश रहेछे. --women
SR No.010318
Book TitleJain Tattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Jain Sabha Bhavnagar
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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