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________________ ( २७ ) दुर्मन्त्रना जे वर्णो होयछे ते उच्चाटन कहेवायछे. दुान्त्रिकना हृदय जेवू निगोदनुं स्थान छे. दुमन्त्रना वर्णो जेवा निगोदना जीवो छे. सन्मन्त्रना वर्णो जेवा व्यवहार राशिना जीवो छे. जेम दुमन्त्रमांना वर्णोमांथी जे वर्णो सन्मन्त्रमा आवे ते शुभ कहेवायछे, तेम निगोदना जीवोमांथी जे व्यवहार राशिमां आवेछे ते विशिष्ट थायछे. जेम सन्मन्त्रमांना जे वर्णो पाछा दुर्मन्त्रमा वपराय ते उच्चाटन दोषथी दुषित थाय, तेम व्यवहार राशिमाथी निगोदमां पाछा आवेला जीवो निगोद जेवा थायछे. पंडितोए स्वबुद्धिथी एवा नानां मोटां दृष्टांतो योजी लेवां. निगोदना जीवो समस्त लोकमां व्यापीने रहेला छे ते घनीभूत थतां दृष्टिपथमा केम आवता नथी ? निगोदना जीवो अतिसूक्ष्म नामकर्मना उदयथी एक शरीर आश्रि अनंत रहेला छे तथापि चर्मचक्षुथी देखाता नथी. जेम गंधा (वज), कलेवर अने हिंग वगैरेनी बहु प्रकारनी गंध परस्पर मळीने रह्याथी अन्य वस्तुने अथवा आकाशने सकोणता थती नथी, तेम निगोद जीवोना परस्पर आश्लेषथी तेमने पोताने सदाकाळ अति बाधा रहेछे पण अन्य वस्तुने तथा आकाशन सकाणता थती नथी जेम गंधादिक वस्तुनी सत्ता नाकथी समजायछे पण आंखथी जोइ शकाती ज नथी तेम निगोदना जीवो श्रीजिनवचनथी मनवडे जाणी (मानी ) शकाय पण जोइ शकाय नहि. केवलज्ञानी मात्र तेमने जोइ शके. जेम सर्वत्र उडती अति सूक्ष्म रज आंखे देखाती नथी अने राशीभूत थतो पण जणाती नथो परन्तु आच्छादित वस्त्रप्रदेशना ण्द्रिमा पडेलां सूर्यकिरणोनां प्रतिबियोमा उडती त्रसरेणु देखायछे, ते मत निगोदना जीवो दिव्य दृष्टिथी देखी.शकायछे.
SR No.010318
Book TitleJain Tattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Jain Sabha Bhavnagar
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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