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________________ जे कंइ कहेवानुं (वाच्य ) छे ते सांभळो. ज्योतिर्मय, चिन्मय, सदा एकरूप, लोकोनां सुखदुःखना हेतु जे जुवेछे अने योगीश्वरोने जेमनुं स्वरूप ध्येयतम छे एवा परमेश्वर छे. जीव तथापकारना कर्मना योगथी सुगति अथवा दुर्गति, सुख अथवा दुःख पामेछे. ज्यारे जीव समानभावने धारण करेछे त्यारे ब्रह्मत्वने पामेछे. परमेश्वर संबंधी सृष्टिसंहारनी कथानी प्रवृत्ति करवाथी जो लोकोनी तुष्टि थती होय तो स्फुर्ति अने प्रभावन प्रतिपादन करवा माटे ईश्वरनी स्तुति करवी योग्य छे. परमेष्ठि-परमेश्वरने कर्ता कहेवार्नु रहेवा यो. जेम लोकमां कोई शूरवीर पोताना स्वामीनां शस्त्रोवडे शत्रुओने जीतीने निज अंगमा सुख करवाथी कर्ता थाय तेम परमेश्वरखें ध्यान करनार परमेश्वरना ध्यानवडे आत्माने सुख करवाथी का छे अने आत्माना अंधकारनो अपहार करवाथी संहा छे. जेम शूरवीरे शस्त्र वापरवाथी शस्त्रना स्वामीने कंइ पण प्रयास पडतो नथी तेम भक्ते ईश्वरचं ध्यान करवाथी ईश्वरने पण. कंइ क्रिया करवी पडती नथी. आथी ईश्वरनी निष्क्रियता सिद्ध थायछे. जेम शूरवीर शस्त्रना प्रभाववडे सुख थवाथी सुख करनार तरीके शस्त्रना स्वामीने कथन करे तेम भक्त पण ध्यानना प्रभाववडे सुख थवाथी सुख करनार तरीके ध्यानना स्वामी परमेश्वरनेज कहेछे. एवां अनेक दृष्टान्तोवडे परमेश्वरखें ध्यान करनार भक्तने सृष्टिसंहारनो कर्त्ता प्रतिपादन ___करी शकाय.
SR No.010318
Book TitleJain Tattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Jain Sabha Bhavnagar
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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