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________________ (११) तत्त्वसार, २ जीवकर्मविचार अने ३ सूरचंद्रमनःस्थिरीकार एवां त्रण अभिधान-नाम राखवामां आवेलां छे ते शुं सूचवे छे ? रागद्वेषादि दोषो उपर जित मेळवनार जिन (तीर्थकर-परमेश्वर ) ना दर्शनमां जीव (आत्मा), अजीव (कर्मादि), पुण्य, पाप, बंध अने मोक्ष वगेरे तत्त्वोनो विस्तारथी विचार करेलो छे. ते सामान्य लोकने प्रतिबोध करवाना हेतुथी लोकप्रसिद्ध दृष्टांतो साथे साररूपे आ लघु ग्रंथमां आपेलो छे. तेथी जेमप्रथम नाम सार्थक समजायछे तेम वीजानो अर्थ पण स्पष्ट समजायछे अने त्रीजा नाममा ग्रंथकानुं पोतानुं नाम सूचित थवानी साथे अध्यात्मसंबंध विशेषतः व्यंजित थायछे. सूर एटले सूर्यनाडी, चंद्र एटले चंद्रनाडी अने मनः एटले मध्य-सुषुम्णा नाडी जेमा वायुनो संचार करवाथी मननी स्थिरताथाय छे. तेमना स्थिरीकार एटले सूर्यादि नाडीओनी स्थिरता *अथवा सूरचंद्रना अने बीजाना मननी स्थिरता-समाधि माटे आ ग्रंथ रचवामां आव्योछे. योगस्य हेतुर्मनसः समाधिः मननी समाधि ए योग-अध्यात्मनो हेतु छे माटे आ ग्रंथ अध्यात्मशास्त्रनी कोटिमां ज मूकवा लायक छे. ग्रंथारंभे निकटोपकारी योगीश्वर श्रीवर्धमान महावीरस्वामीने नमस्काररूप मंगल करी किञ्चिद्विचारं स्वविदे समूहे ए वाक्यथी वस्तुनिर्देश करवामां आव्योछे के आत्मज्ञान माटे किंचित् विचार दीवुछ एटलं ज नहि पण स्थळे स्थळे ए विपय उपर भार मूकी लक्ष खेंचवामां आव्युंछे. * तेनासुको वाचकमुरचन्द्रनामा रसजाफलमित्थमिच्छता । ग्रन्थोऽभितोऽग्रन्थि मया स्वकीयान्यदीयचेतःस्थिरतोपसम्पदे ॥ २१ अ, २१ श्लो.
SR No.010318
Book TitleJain Tattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Jain Sabha Bhavnagar
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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