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________________ ( ६२ ) नय की अपेक्षा विचार करने पर तो धन धान्यादि, सोना, चांदी प्रमुख नव विव द्रव्य परिग्रह कहलाता है. परिग्रह पाप है, इम अपेक्षा से धन धान्यादि द्रव्य परिग्रह भी आठ स्पर्शी कहलाता है, यदि परिग्रह को एकान्त पाप कहा जाय तो भरत चक्रवर्ती को आभूषण पहने हुई अवस्था में केवल ज्ञान किस प्रकार उत्पन्न हुआ ? क्योंकि पाप के रहते केवल ज्ञान उत्पन्न होता नहीं, इस अपेक्षा से द्रव्य परिग्रह से केवल्य ज्ञानादि वस्तु नहीं रुकती है, यहां ममत्व भाव को परिग्रह कहा है । ममत्व भाव से केवल ज्ञानादि वस्तु रुकती है, द्रव्य परिग्रह से दूसरे साधु संभोग नहीं करते हैं, द्रव्य लिंग रहित साधु को देवता भी वन्दन नहीं करते हैं, जिस प्रकार अन्य लिंग में गृहस्थी के वेप में ज्ञान उत्पन्न होता है देवता साधु के उपकरण देवे, उन्हें पहिनने पश्चात् देव वन्दना करे, इसलिए द्रव्य को भी एक अपेक्षा से परिग्रह में गिना जाता है, यह औपचारिक नय कहलाता है । मुख्य नय की अपेक्षा जीव घात आदि करने से जो अशुभ कर्म बांधे, वे चौस्पर्शी पुद्गल परिणामिक भाव में रहते द्रव्य पाप कहलाते हैं और जब उदय में आवे तब वे भाव पाप कहलाते हैं । सूत्र में स्थान २ पर अठारह पाप को चौस्पर्शी कहा है इस अपेक्षा अजीव परिणाम जानने
SR No.010317
Book TitleJain Tattva Shodhak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTikamdasmuni, Madansinh Kummat
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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