SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २६ ) जीव का सातवां भेद 'तेन्द्रिय का अपर्याप्ता' १-गति-तिर्यञ्च की २-जाति-जेन्द्रिय ३-काया-त्रस ४-दंडक-अठारहवां ५-प्राण-छः ६-पर्याप्ति-चार ७-आयुष्य-जघन्य एवं उत्कृष्ट अंतमु हुत का ८-अबगाहना- अंगुली का असंख्यातवां भाग ९-आगत - दो १०-गत-दो ११-गुणस्थान - दो - प्रथम व दूसरा । जीव का आठवां भेद 'तेन्द्रिय का पर्याप्ता' १. गति २. जाति ३. काया एवं ४. दंडक तेन्द्रिय अपर्याप्ता के समान जाने। ५. प्राण-सात ६. पर्याप्ति-पांच ७. आयुष्य-जघन्य अंतमु हुर्त का एवं उत्कृष्ट उनपचास दिन का। ८. अवगाहना-जघन्य अंगुली के असंख्यातवें भाग व उत्कृष्ट तीन कोस की (१कोस=२मील) ९. आगत दो- मनुष्य व तिर्यश्च १०. गत-दो- मनुष्य व तिर्यंच ११. गुणस्थान- एक प्रथम । - जीव का नवमां भेद 'चौन्द्रिय का अपर्याप्ता' १. गति-तिर्यंच की २. जाति-चौन्द्रिय ३. काया-त्रस ४. दंडक-उन्नीसवां ५. प्राण-सात ६. पर्याप्ति-चार ७: आयुष्य-जघन्य उत्कृष्ट अंतमु हुत की ८. अवगाहनाजघन्य अंगुली का असंख्यातवां भाग ९. आगत - दो - मनुष्य व तिर्गव १०. गत - दो - मनुष्य व तिर्गंच ११. गुणस्थान - दो - प्रथम व दूसरा ।
SR No.010317
Book TitleJain Tattva Shodhak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTikamdasmuni, Madansinh Kummat
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy