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________________ (१६६) नाव छूटने पर ही घर जा सकेगा, परन्तु नाव छूटे बिना नहीं । इसी प्रकार संसार रूप समुद्र में तेरहवें गुणस्थान तक तो पुण्य रूप नाव ग्रहण करने योग्य है, अंत समय में पुण्य स्वतः ही छूट जाता है, अतः मैं अभी से छोड़ दूँ, ऐसा जानकर पुण्य रूप नाव छोड़ देगा तो पाप रूपी पानी में डूब जावेगा | अतः संसार समुद्र तिरने के बाद चौदहवें गुणस्थान के अन्तिम समय में पुण्य छूटता है, इसलिये वहां पुण्य छूटने से मुक्ति जावेगा । दृष्टान्त - जैसे कोई पुरुष झोले में घूघरी लेकर अन्यत्र जाने लगा मार्ग में घृधरी खाता जावे और कंकर दूर डालता जावे, ऐसे करते हुए घूघरी खाकर पूरी कर दी, तथा कंकर भी डालकर पूरे कर दिये, इस दृष्टांत से जीव भी शुभाशुभ कर्म सहित है, पाप का त्याग करता हुआ पाप रूपी कंकर डाल दे तथा पुण्य रूपी घूघरी खाकर पूरी करे परन्तु डाले नहीं, दोनों पूरे होने पर कर्म रहित हो जावे, यदि घूघरी डाल दे तो भूख से मर जावे, इस न्याय से पुण्य छोड़ने योग्य नहीं है । P T महल में प्रवेश करने के लिए सीढ़ियां चढ़ना आवश्यक है, अस्तु सीढियां 'आदरणीय है किन्तु ऊपर चढ़ने के पश्चात् स्वतः छूट जाती है । यदि बीच में छोड़ दे तो नीचे गिरे | इसी प्रकार मुक्ति मन्दिर में प्रवेश हेतु पुण्य
SR No.010317
Book TitleJain Tattva Shodhak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTikamdasmuni, Madansinh Kummat
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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