SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१६७) द्रव्य गुण पर्याय द्वार १६. I t १ - जीव का द्रव्य जीव असंख्यात प्रदेशी है । गुण ज्ञान दर्शन के हैं । तद्रूप अनादि गुण है | चारित्र तपस्या आदि गुण है । कषाय आदि अशुद्ध गुण है । वीर्य एवं उपयोग तद्गुण पर्याय के दो भेद - एक द्रव्य पर्याय दूसरा गुण पर्याय । द्रव्य पर्याय नरकादि । गुण पर्याय भति, श्रुति आदि । ये जीव के द्रव्य पर्याय कहलाते हैं । २ - अजीव के द्रव्य, पांच धर्मादि, गुण जड़ लक्षण पर्याय पलटने रूप परमाणु आदि । धर्मास्ति का द्रव्य धर्म द्रव्य, गुण चलन, पर्याय अनन्त, जीव और अनन्त पुद्गलों को चलाने की शक्ति, इसलिये अनन्त पर्याय ऐसे ही अधर्म का द्रव्य एक असंख्यात प्रदेशी, गुणस्थिर, पर्याय अनन्त, जीव पुद्गल को स्थिर रखने की शक्ति, आकाश का द्रव्य एक अनन्त प्रदेशी, गुण विकास, पर्याय अनन्ता, द्रव्य को जगह देने की शक्ति, काल का द्रव्य एक समय, गुण वर्तना (व्यतीत होना) रूप । पर्याय 'अनंत जीव पुद्गल परवर्ते । नई नई अवस्था करता है, इस कारण एक समय के अनंत पर्याय, पुद्गल का द्रव्य पुद्गल परमाणु यावत् अनन्त प्रदेशी, ' गुण ग्रहण लक्षण, पर्याय एक गुण काला, यावत् अनन्त गुण काला, ऐसे यावत लूखा । 1
SR No.010317
Book TitleJain Tattva Shodhak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTikamdasmuni, Madansinh Kummat
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy