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________________ ( ४ ) ३. भेद द्वार तीसरा भेद द्वार है इसमें तत्वों के भेदों का वर्णन किया है : जीव तत्व के दो भेद हैं : (१) शुद्ध जीव और (२) अशुद्ध जीव । जो कर्म रहित शुद्ध सच्चिदानन्द स्वरूप सिद्ध परमात्मा है वह शुद्ध जीव कहलाता है । संसारी जीव कर्म मल सहित चतुर्दश गुण स्थान में रहने वाला जीव अशुद्ध जीव कहलाता है । सामान्य रूप से संसारी जीव के १४ भेद होते हैं :(एगिंदिया सुहुमियरा, सण्णीयर पंचिदिया य सबितिचउ । अपज्जता पज्जता, कमेण चउदस जीव ठाणा । ) 1 १. सूक्ष्म एकेन्द्रिय के दो भेद अपर्याप्त और पर्याप्त २. वादर एकेन्द्रिय ३. वेइन्द्रिय ४. तेइन्द्रिय ५. चौइन्द्रिय ६. असन्नी पंचेन्द्रिय ७. सन्नी पंचेन्द्रिय ७×२=१४ 11 " 11 " 11 11 31 " 11 11 33 " 33 " "" ܐܐ 11 11 33 " 33 11 "1 11 " " 17
SR No.010317
Book TitleJain Tattva Shodhak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTikamdasmuni, Madansinh Kummat
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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