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________________ (१४६) ७- निर्जरा तत्त्व धर्म है पर कर्म नहीं । ८- बंध तत्त्व कर्म है पर धर्म नहीं | ९ - मोक्ष तत्त्व धर्म है पर कर्म नहीं । पुण्य, पाप, आश्रव और बंध ये चार तत्त्व कर्म है । संवर, निर्जरा व मोक्ष ये तीन तत्व धर्म है । ॥ इति धर्म कर्म द्वार समाप्तम् ।। १३. * प्राज्ञा अनाज्ञा द्वार १ - जीव तत्व जीव पन चेतना ज्ञान रूप आज्ञा में है और कितने ही जीव आज्ञा में है कितने ही आज्ञा में नहीं है । २ - भजीव तत्व का अजीव पन आज्ञा में है, बाहर नहीं है और कितने ही अजीव रखने की आज्ञा है । ३- पुण्य तत्व- पुण्य की करणी आज्ञा में है । पुण्य का परमाणु आज्ञा में है परन्तु बाहर नहीं । ४ - पाप तत्व - पाप की करणी आज्ञा बाहर है, पाप के परमाणु आज्ञा में है पर बाहर नहीं । ५ - आश्रव तत्व - भाश्रव की करणी आज्ञा में भी है, और आज्ञा बाहर भी है, इनमें मिध्यात्व, अव्रत, कषाय, 1
SR No.010317
Book TitleJain Tattva Shodhak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTikamdasmuni, Madansinh Kummat
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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