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________________ (३१) सूत्र के दसरे श्रुतस्कन्ध के नौवे अध्याय में घर का दरवाजा बन्द किया हुआ हो तो आज्ञा लेकर, देखकर, पूज कर खोलने का कहा है, इसलिये किवाड़ खोलने से महावत - भंग हुवा कहे यह झूठी बात है, परन्तु कोई किवाड़ बन्द नहीं करे तो विशेषता है क्योंकि बन्द करने से किसी समय हिंसा होगी तो अतिचार है हम तो दोनों में कमी मानते हैं । यदि एक महाव्रत भंग हो और एक में किचित भी दोष नहीं तो ये दोनों बातें झूठी है, तब वे कहे कि साधु हस्थी को किवाड़ बन्द करने का नियम कराते हैं, तब स्वयं कैसे बन्द करते हैं ? उन्हें ऐसा कहे कि साधु गृहस्थी को उपवास कराकर स्वयं कैसे खाते है ? तथा साधु को पूजते पडिलेहण करते, चलते नदी में उतरते. किवाड़ खोलते अन्द करते जो हिंसा होती है उसकी तो आलोचना निदा करते हैं परन्तु अनुमोदन नहीं करते हैं। दोनों समय प्रतिक्रमण करते समय आलोचना करते हैं तथा कोई कहे कि अतिचार की आलोचना किये विना मरे तो विगधिक होते हैं तो तुम कभी आलोचना करते हो ? उन्हें पूछे कि आप मध्य रात्रि के पूर्व अतिचार सेवन का उसकी मालोचना किये बिना मर गये तो आराधिक या विराधिक ? क्योंकि मध्यरात्रि में किस समय आलोचना करते हो?
SR No.010317
Book TitleJain Tattva Shodhak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTikamdasmuni, Madansinh Kummat
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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