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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४० जैन तत्व मीमासा की विना उपकरण जगतकी रचना ब्रह्म इच्छा से होती है। क्या इच्छासे जग बनता है ? झूठ कल्पना खोटी है । जगदीश्वर है कृत्य कृत्य तो करचुके हैं सारे काम । यदि नहीं है तो हैं अपूरण उनसे भी नही होता धाम । ५ जग व्यापक अरु अचल ईश तो हलन चलन ना कर सकता हलन चलन विन सृष्टि न होतो व्यापक अचलता सब खोता निविकार है यदि ईश्वर तो विकारता क्यों मन भाती । जग रचनाकी इच्छा होती विकारता तब आ जाती । ६ क्या ईशका यह स्वभाव जो विन रचना ना चैन परे । ऐसा है तो है संसारी जग चिन्ता कर दुख भरे। . अथवा ईश्वर क्रीडा अर्थी रचना कर सुख माना है। खेल कूद तो बालक करते ज्ञान हीन जग जाना है। " कर्मोदय अनुमार जीव का ईश्वर शरीर बनाता हैं। नर नरकादिक चारों गतिमें गति आकार रचाता है। संभव ऐसा होता नाही वृथा युक्ति मत हिये धरो। जैसे तांती कपडा बुनता क्या ब्रह्मा यह नाम खरो ? | पुण्य पाप कर जीव जगत में नाना गतिमें भ्रमता है। पुण्य पापकालेखा करके ईश्वर फल को देता है। इस प्रकार की झूठी युक्ति महिमा झूठी गाई है। न्यायाधीश भी न्याय करता क्या हम कहै गुसाई है ? : पराधीनता रहती इसमें ईश्वरता सब जाती है। निराबाध स्वाधीन सुखी है ईश्वरता कहां पाती है। पूर्वोपार्जित कर्मोदय से प्राणी सुख दुःख भोगे हैं। निःकारण अरु वृथा ईशका उसमें कारण झोके हैं । १० गाछ गछीला आदि पदार्थ स्वतः फूल फल फला करे । हाड मांस मज्जगदिक धातु स्वयं अन्नसे वनो करे For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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