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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा २७६ air कन्धे से निकला और द्वारिका भस्म होने लगी । अनेक उपाय करने पर भी न बची। न वचनेका कारण यही था कि उसका इसी तरह अपक्रम से विनाश होना था, इसके साथ अनेकों का अपक्रम नाश हुआ केवल कृष्ण और बलदेव यह दो वचे तथा इनमें से भी कृष्णकी जरदकुमारके तीरसे अमृत्यु हुई. उन सबका अपक्रमरूप से ही परिणमन करनेका प्रेरक निमित्त मिला जिससे उन सबकी क्रमबद्ध परिणमन करनेकी योग्यता उस समय नष्ट हो गईं। भगवान के ज्ञानमें उन सबका जैसा परिणमन होने वाला था वैसा ज्ञेय रूप झलका तैसा ही उन्होंने दिव्यध्वनि में प्रगट किया। भगवान के ज्ञान में तो सब ज्ञेय रूप झलकता हो रहता है उससे हमको क्या ? उनके ज्ञान का परिणामन उनके पास है हमारा परिणमन हमारे पास है हमारा जैसा परिणमन होगा वैसा उनके ज्ञान में झलक जाता है पूछने पर वता भी देते हैं कि तुम्हारा परिणमन उस समय इस रूप में होने वाला है । इससे क्या हुआ ! उनके ज्ञान में हमारा ही तो क्रमबद्ध या अक्रमवद्ध परिणमन पडा इसके अतिरिक्त यह तो न हुआ कि उनके ज्ञानके अनुसार हमको परिणमन करना पड़ा । यदि उनके ज्ञानके आधार पर हमारा परिणमन हम मान लेते हैं तो इसमें दोनोंकी स्वतंत्रता नष्ट होती है। इसलिये उनके ज्ञानका . . परिणमन उनके पास है, हमारा परिणमन स्वतंत्र निमित्तानुसार हमारे पास है। हम क्रमवद्ध परिणमन करें या अक्रमबद्ध परिणमन करें । केवली भगवान तो केवल साखा गोपाल हैं । जैसा हम करेंगे वैसा वे पूछने पर बता देंगे इससे हमारा परिणमन ( सर्व पर्यायें ) क्रमबद्ध होता है ऐसा सिद्ध नहीं होता भगवान के ज्ञान में ज्ञेय झलकने की बात भगवान के ज्ञान में रही। हमारा कर्तव्य हमारे पास रहा भगवान का हमारे लिये For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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