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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३० जन तत्त्व मीमांसा की सम्बन्ध ही नहीं है इसलिये दैवका अर्थ योग्यता करना प्रमाणवाधित है। योग्यता तो उपादानकी कार्य निष्पत्तिका नाम है । सो वह विना निमित्त केवल उपादानको योग्यतासे नहीं होती। उपादान और निमित्त मीमांसा के कथन में आपने प्रकारान्तरमे नियमित वादको और योग्यता को सिद्ध करनेकी चेला की है। तथा निमित्त को मात्र उपस्थित मानकर कार्योत्पत्ति केवल उपादानकी योग्यता से ही होती है ऐसा दरशानेका प्रयत्न किया है किन्तु इसमें भी आप सफल नही हो सके हैं। आप जो यह कहते हैं कि " जैसा कि पहिले लिख आये हैं भवितव्यता उपादान की योग्यता का ही दूसरा नाम है । प्रत्येक द्रव्य में कार्यक्षम भवितव्यता होती है इसका समर्थन करते हुये स्वामी समन्तभद्राचार्य अपने स्वयम्भू स्तोत्र में कहते हैं-"अलंघ्यशक्तिर्भवितव्यतयं हेतुद्वयाविष्कृतकार्यलिंगा | अनीश्वरो जंतुरहंक्रियार्चः संहत्य कार्येष्विति साध्ववादी : " आपने ( जिनदेवने ) यह ठीक ही कहा है कि हेतुद्वयसे उत्पन्न होने वाला कार्य हो जिसका ज्ञापक है ऐमी यह भवितत्र्यता अलंघ्य शक्ति है, क्योंकि संसारी प्राणां मैं इस कार्यको कर सकता हूं इस प्रकारके अहंकार से पीडित है वह उस ( भवितन्यता) के विना अनेक सहकारी कारणोंको मिला कर भी कार्यों के संपन्न करने में समर्थ नही होता । "सव द्रव्योंमें कार्योत्पादनक्षम उपादानगत योग्यता होती है इसका समर्थन भट्टाकलंक देवने अष्टशती टीका में भी किया है। प्रकरण संसारी जीवके देव पुरुषार्थवादका है। वहां वे दैव व पुरुषार्थका स्पष्ट करते हुये For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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