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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा यह व्यवहार चारित्र मुनिलिंग मोक्षमार्गको दिखाता है प्रगट करता है। "दंसेइ मोक्खमग्गं सम्मत्तं संयम सुधम्म च । णिग्गथं गाणमयं जिणमग्गे दंसणं भणिय" ५४ वोधनाभृते सम्यक्त्व उत्पन्न होनेमें जो दश प्रकारका निमित्त कारण बतलाया है उसमें निग्रन्थनिंगका अवलोकन भी एक कारण है दश प्रकारके ब्यबहार सम्यक्त्व प्राप्तिका कारण निम्न प्रकार गुणभद्राचार्य आत्मानुशासनमें बतलाते हैं कि__"आज्ञामार्गसमुद्भवमुपदेशात्सूत्रवीजसंक्षेपात् विस्तारार्थाभ्यां भवमवपरमावादिगाढे च" टीका-एवं जिनसर्वज्ञ वीतरागवचनमेव प्रमाणं क्रियते तदा आबासम्यक्त्वं कथ्यते १ निग्रंथलक्षणो मोक्षमार्गोन वस्त्रादिवेष्टितः पुमान् कदाचिदपि मोदं प्राप्स्यति एवंविधो मनोभिप्रायो निग्रंथलक्षणमोक्षमार्गे रुचिर्मार्गस. म्यक्त्वं द्वितीयमुच्यते २ त्रिपष्टिलक्षणमहापुराणसमाकर्म नेन वोधिसमाधिप्रदानकर णेन यदुत्पन्नं श्रद्धानं तदुपदेशनामकं सम्यग्दर्शनं भएयते ३ मुनीनामाचारसूत्रं मूलाचारशास्त्रं श्रुत्वा यदुत्पद्यते तत्सूत्रसम्यक्त्वं कथ्यते ।। ४ ।। उपलब्धिवशाद् दुरमि निवेश विध्वंसार निरुपमोपशमाभ्यन्तरकारणाद् विज्ञातदुर्व्याख्येय जीवादिपदार्थवीजभूतशास्त्रायदुत्पद्यते तद्वीजसम्यकरणं For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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