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________________ संक्षिप्त अनुमान-विवेचन : ५० प्रसिद्धिविरोध और पूर्वसंजल्पविरोध ये तीन भेद किये हैं। तथा अर्थापत्तिविरोध, उपमानविरोध और अभावविरोध ये तीन भेद सर्वथा नये हैं, जो उनके मतानुरूप है । विशेष' यह कि इन विरोधोंको धर्म, धर्मी और उभयके सामान्य तथा विशेष स्वरूपगत बतलाया गया है। त्रिविध हेत्वाभासोंके अवान्तर भेदोंका भी प्रदर्शन किया है और न्यायप्रवेशको भाँति कुमारिलने विरुद्धाव्यभिचारी भी माना है। सांख्यदर्शनमें यक्तिदीपिका आदिमें तो अनुमानदोषोंका प्रतिपादन नहीं मिलता। किन्तु माठरने असिद्धादि चउदह हेत्वाभासों तथा साध्यविकलादि दश साधर्म्यवैधर्म्य निदर्शनाभासोंका निरूपण किया है। निदर्शनाभासोंका प्रतिपादन उन्होंने प्रशस्तपादके अनुसार किया है । अन्तर इतना ही है कि माठरने प्रशस्तपादके बारह निदर्शनाभासोंमें दशको स्वीकार किया है और आश्रयासिद्ध नामक दो साधर्म्य-वैधर्म्य निदर्शनाभासों को छोड़ दिया है। पक्षाभास भो उन्होंने नो निर्दिष्ट किये हैं। जैन परम्पराके उपलब्ध न्यायग्रन्थों में सर्वप्रथम न्यायावतारमें अनुमान-दोषोंका स्पष्ट कथन प्राप्त होता है । इसमें पक्षादि तीनके वचनको परार्थानुमान कहकर उसके दोष भो तीन प्रकारके बतलाए हैं-१. पक्षाभास, २. हेत्वाभास और ३. दृष्टान्ताभास । पक्षाभासके सिद्ध और बाधित ये दो भेद दिखाकर बाधितके प्रत्यक्षबाधित, अनुमानबाधित, लोकबाधित और स्ववचनबाधित-ये चार भेद गिनाये हैं। असिद्ध, विरुद्ध और अनैकान्तिक तीन हेत्वाभासों तथा छह साधर्म्य और छह वैधयं कुल बारह दृष्टान्ताभासोंका भी कथन किया है । ध्यातव्य है कि साध्यविकल, साधनविकल और उभयविकल ये तीन साधर्म्य-दृष्टान्ताभास तथा साध्याव्यावृत्त साधनाव्यावृत्त और उभयाव्यावृत्त ये तीन वैधयं दृष्टान्ताभास तो प्रशस्तपादभाष्य और न्यायप्रवेश जैसे ही हैं किन्तु सन्दिग्धसाध्य, सन्दिग्धसाधन और सन्दिग्धोभय ये तीन साघम्यं दृष्टान्ताभास तथा सन्दिग्धसाध्यव्यावृत्ति, सन्दिग्धसाधनव्यावृत्ति और सन्दिग्धोभयव्यावृत्ति ये तीन वैधर्म्य दृष्टान्ताभास न प्रशस्तपादभाष्यमें हैं और न न्यायप्रवेशमें । प्रशस्तपादभाष्यमें आश्रयासिद्ध, १. मी० श्लो०, अनु० परि० श्लोक ७०, तथा व्याख्या २. वही, अनु० परि० श्लोक ९२ तथा व्याख्या। ३. माठरवृ. का०५। ४. न्यायाव० का० १३, २१-२५ । ५-६. वही, का० २१ । ७. वही, का० २२, २३ ।। ८, ६. वही, का० २४, २५ । है. प्रश० भा० पृ० १२३ । १०. न्यायप्र० पृ० ५-७ ।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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