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________________ संक्षिप्त अनुमान-विवेचन : ३५ नियत साहचर्य सम्बन्ध या व्याप्ति है। इसके अभावमें अनुमानकी उत्पत्तिमें धूमज्ञानका कुछ भी महत्त्व नहीं है । किन्तु व्याप्तिज्ञानके होने पर अनुमानके लिए उक्त धूमज्ञान महत्त्वपूर्ण बन जाता है और वह अग्निज्ञानको उत्पन्न कर देता है। अतः अनुमानके लिए पक्षधर्मता और व्याप्ति इन दोनोंके संयुक्त ज्ञानकी आवश्यकता है। स्मरण रहे कि जैन ताकिकोंने२ व्याप्तिज्ञानको ही अनुमानके लिए आवश्यक माना है, पक्षधर्मताके ज्ञानको नहीं; क्योंकि अपक्षधर्म कृत्तिकोदय आदि हेतुओंसे भी अनुमान होता है । ( क ) पक्षधर्मता : ___ जिस पक्षधर्मताका अनुमानके आवश्यक अंगके रूपमें ऊपर निर्देश किया गया है उसका व्यवहार न्यायशास्त्रमें कबसे आरम्भ हुआ, इसका यहाँ ऐतिहासिक विमर्श किया जाता है। कणादके वैशेषिकसूत्र और अक्षपादके न्यायसूत्रमें न पक्ष शब्द मिलता है और न पक्षधर्मता शब्द । न्यायसूत्रमें साध्य और प्रतिज्ञा शब्दोंका प्रयोग पाया जाता है, जिनका न्यायभाष्यकारने प्रज्ञापनीय धर्मसे विशिष्ट धर्मो अर्थ प्रस्तुत किया है और जिसे पक्षका प्रतिनिधि कहा जा सकता है, पर पक्षशब्द प्रयुक्त नहीं है । प्रशस्तपादभाष्यमें" यद्यपि न्यायभाष्यकारकी तरह धर्मी और न्यायसूत्रकी तरह प्रतिज्ञा दोनों शब्द एकत्र उपलब्ध हैं। तथा लिंगको त्रिरूप बतलाकर उन तीनों रूपोंका प्रतिपादन काश्यपके नामसे दो कारिकाएँ उद्धृत करके किया है। किन्तु १. यत्र यत्र घूमस्तत्र तत्राग्निरिति माहचनियमा व्याप्तिः । -तकसं०, पृ ५४ । तथा केशमिश्र, तकमा० पृष्ठ ७२ । २. पक्षधमत्वहीनोऽपि गमकः कृत्तिकोदयः । अन्ताप्तेरतः सैव गमकत्वप्रसाधनी ॥ -वादीसिह, स्या० सि० ४।८३-८४ । ३. साध्यनिर्देशः प्रतिशा । -अक्षपाद, न्यायसू० १११०३३ । ४. प्रशापनीयेन धर्मेण धमिणो विशिष्टरय परिग्रहवचनं प्रतिशा साध्यनिर्देशः अनित्यः शब्द इति। -वात्स्यायन, न्यायभा० १.१।३३ तथा ११३४ । ५. अनुमेयोद्देशाऽविरोधी प्रतिज्ञा। प्रतिपिपादायषितधर्मविशिष्टस्य धमिणोऽपदेश-विषयमापादयितुमुद्देशमात्रं प्रतिज्ञा ।। -प्रशस्तपाद, वैशि० भाष्य पृष्ठ ११४ । ६. यदनुमेयेन सम्बद्धं प्रसिद्धं च तदन्विते । तदभावे च नास्त्येब तल्लिंगमनुमापकम् ।। -वही, पृष्ठ १००।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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