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________________ २८ : जेन तर्कशास्त्रमें अनुमान-विचार १. अतीतकालग्रहण-उत्तण वन, निष्पन्नशस्या पृथ्वी, जलपूर्ण कुण्ड-सर-नदीदोधिका-तडाग आदि देखकर अनुमान करना कि सुवृद्धि हुई है, यह अतीतकालग्रहण है। २. प्रत्युत्पन्नकालग्रहण-भिक्षाचर्या में प्रचुर भिक्षा मिलती देख अनुमान करना कि सुभिक्ष है, यह प्रत्युत्पन्नकालग्रहण है । ३. अनागतकालग्रहण-बादलको निर्मलता, कृष्ण पहाड़, सविद्यत् मेघ, मेघगर्जन, वातोभ्रम, रक्त और प्रस्निग्ध सन्ध्या, वारुण या माहेन्द्रसम्बन्धी या और कोई प्रशस्त उत्पात इनको देख कर अनुमान करना कि सुवृष्टि होगी, यह अनागतकालग्रहण अनुमान है । उक्त लक्षणोंका विपर्यय देखने पर तीनों कालोंके ग्रहणमें विपर्यय भी हो जाता है । अर्थात् सूखी जमीन, शुष्क तालाब आदि देखने पर वृष्टिके अभावका, भिक्षा कम मिलने पर वर्तमान दुर्भिक्षका और प्रसन्न दिशाओं आदिके होने पर अनागत कुवृष्टिका अनुमान होता है, यह भी अनुयोगद्वारमें सोदाहरण अभिहित है । उल्लेखनीय है कि कालभेदसे तीन प्रकारके अनुमानोंका निर्देश चरकसूत्रस्थान ( अ० ११।२१,२२ ) में भी मिलता है । ___न्यायसूत्र', उपायहृदय और सांख्यकारिका में भी पूर्ववत् आदि अनुमानके तीन भेदोंका प्रतिपादन है। उनमें प्रथमके दो वही हैं जो ऊपर अनुयोगद्वारमें निर्दिष्ट हैं । किन्तु तीसरे भेदका नाम अनुयोगकी तरह द्वष्टसाधर्म्यवत् न हो कर सामान्यतोदष्ट है । अनुयोगद्वारगत पूर्ववत् जैसा उदाहरण उपायहृदय ( पृ० १३) में भी आया है। ___ इन अनुमानभेद-प्रभेदों और उनके उदाहरणोंके विवेचनसे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि गौतमके न्यायसूत्रम जिन तीन अनुमानभेदोंका निर्देश है वे उस समयको अनुमान-चर्चा में वर्तमान थे। अनुयोगद्वारके अनुमानोंकी व्याख्या अभिधामूलक है ! पूर्ववत्का शाब्दिक अर्थ है पूर्व के समान किसी वस्तुको वर्तमानमें देखकर उसका ज्ञान प्राप्त करना । स्मरणीय है कि दृष्टव्य वस्तु पूर्वोत्तरकालमें मूलतः एक हो है और जिसे देखा गया है उसके सामान्य धर्म पूर्वकालमें भी विद्यमान रहते हैं तथा उत्तरकालमें मी वे पाये जाते हैं । अतः पूर्वदृष्टके आधारपर उत्तरकाल में देखो वस्तुकी जानकारी प्राप्त करना पूर्ववत् अनुमान है। इस प्रक्रिया में पूर्वांश अज्ञात है और उत्तरांश ज्ञात । अतः ज्ञातसे अज्ञात (अतीत) अंशको जानकारी (प्रत्यभिज्ञा)की जाती है। जैसा कि अनुयोग १. अक्षपाद, न्यायसू० १११।५। २. उपायह० पृ० १३। ३. ईश्वरकृष्ण, सां० का० ५, ६ ।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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