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________________ अनुमानका विकास-क्रम : ९ उनके स्वरूपका कोई प्रदर्शन नहीं होता।' सोलह पदार्थोमें एक अवयव पदार्थ परिगणित है। उसके प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन इन पांच भेदोंका परिभाषासहित निर्देश किया है। अनुमान इन पांचसे सम्पन्न एवं सम्पूर्ण होता है। उनके बिना अनुमानका आत्मलाभ नहीं होता । अतः अनुमानके लिए उनकी आवश्यकता असन्दिग्ध है। 'हेतु' शब्दका प्रयोग अनुमानके लक्षणमें, जो मात्र कारणसामग्रीको हो प्रदर्शित करता हैं, हमें नहीं मिलता, किन्तु उक्त पंचावयवोंके मध्य द्वितीय अवयवके रूप में 'हेतु'का और हेत्वाभासके विवेचन-सन्दर्भमें हेत्वाभासोंका' स्वरूप अवश्य प्राप्त होता है। अनुमान-परीक्षाके प्रकरणमें रोध, उपघात और सादृश्यसे अनुमानके मिथ्या होनेको आशंका व्यक्त को है। इस परीक्षासे विदित है कि गौतमके समयमें अनुमानकी परम्परा पर्याप्त विकसित रूप में विद्यमान थो–'वतमानाभावे सर्वाग्रहणम्, प्रत्यक्षानुपपत्तः" सूत्रमें 'अनुपपत्ति' शब्दका प्रयोग हेतुके रूप में किया है । वास्तव में 'अनुपपत्ति' हेतु पंचम्यन्तकी अपेक्षा अधिक गमक है। इसीसे अनुमानके स्वरूपको भी निर्धारित किया जा सकता है। एक बात और स्मरणीय है कि 'व्याहतस्वात अहेतुः'६ मूत्रमें 'अहेतु' शब्दका प्रयोग सामान्यार्थक मान लिया जाए तो गौतमको अनुमान-मरणिमें हेतु, अहेतु और हेत्वाभास शब्द भी उपलब्ध हो जाते हैं । अतएव निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि गौतम अनुमानके मलभूत प्रतिज्ञा, साध्य और हेतु इन तीनों ही अंगों के स्वरूप और उनके प्रयोगसे सुपरिचित थे । वास्तवमें अनुमानकी प्रमुग्व आघार-शिला गम्य-गमक (माध्य-साधन) भाव योजना ही है। इस योजनाका प्रयोगात्मक रूप साधर्म्य और वैधयं दृष्टान्तोंम पाया जाता है। पंचावयववाक्य को साधर्म्य और वैधयंरूप प्रणालीके मूललेखक गौतम अक्षपाद जान पड़ते हैं। इनके पूर्व कणादके वैशेपिकमूत्रमें अनुमानप्रमाणका निर्देश 'लैंगिक' शब्दद्वारा किया गया है, पर उसका विवेचन न्यायसूत्रमें ही प्रथमतः दृष्टिगोचर १. न्यायस० १०५। २. वही, १९३२-३९ । ३. वही, १५-६ । ४. वही, २०११३८ । ५. वही, २१११४३ । ६. वही, २।१।२९ । ७. साध्यसाात्तद्धर्मभावी दृष्टान्त उदाहरणम् । तद्विपर्ययाद्वा विपरीतम् । -वही ११११३६,३७ । ८. तयोनिष्पत्तिः प्रत्यक्षलैंगिकाभ्याम् । अस्येदं कार्य कारणं संयोगि विरोधि समवायि चेति लैंगिकम् । -वैशेषिकसू० १०।१।३, ९।२।१।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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