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________________ उपसहार पिछले अध्यायोंमें भारतीय तर्कशास्त्रमें निरूपित एवं विवेचित अनुमान तथा उसके घटकोंके यथावश्यक तुलनात्मक अध्ययनके साथ जैन तर्कशास्त्रमें चिन्तित अनुमान एवं उसके परिकरका ऐतिहासिक तथा समीक्षात्मक विमर्श प्रस्तुत किया गया है। अब यहां जैन अनमानकी उपलब्धियोंका संक्षेपमें निर्देश किया जायेगा, जिससे भारतीय अनुमानको जैन ताकिकोंकी क्या देन है, उन्होंने उसमें क्या अभिवृद्धि या संशोधन किया है, यह समझनेमें सहायता मिलेगी। ___ अध्ययनसे अवगत होता है कि उपनिषद् कालमें अनुमानको आवश्यकता एवं प्रयोजनपर भार दिया जाने लगा था, उपनिषदोंमें 'आस्मा वारे रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यामितव्यः'' आदि वाक्योंद्वारा आत्माके श्रवणके साथ मननपर भी बल दिया गया है, जो उपपत्तियों ( युक्तियों ) के द्वारा किया जाता था।' इससे स्पष्ट है कि उस कालमें अनुमानको भी श्रुतिकी तरह ज्ञानका एक साधन माना जाता था-उसके बिना दर्शन अपूर्ण रहता था। यह सच है कि अनुमानका 'अनुमान' शब्दसे व्यवहार होनेको अपेक्षा 'वाकोवाक्यम्', 'आन्वीक्षिकी', 'तर्कविद्या', 'हेतुविद्या' जैसे शब्दों द्वारा अधिक होता था। प्राचीन जैन वाङ्मयमें ज्ञानमीमांसा ( ज्ञानमार्गणा ) के अन्तर्गत अनुमानका 'हेवाद' शब्दसे निर्देश किया गया है और उसे श्रुतका एक पर्याय ( नामान्तर ) बतलाया गया है। तत्त्वार्थ सूत्रकारने उसे 'अभिनिबोध' नामसे उल्लेखित किया है । तात्पर्य यह कि जैन दर्शनमें भी अनुमान अभिमत है तथा प्रत्यक्ष ( सांव्यवहारिक और पारमार्थिक ज्ञानों ) की तरह उसे भी प्रमाण एवं अर्थनिश्चायक माना गया है। अन्तर केवल उनमें वैशद्य और अवैशय का है। प्रत्यक्ष विशद है और अनुमान अविशद ( परोक्ष ) । अनुमानके लिए किन घटकोंकी आवश्यकता है, इसका आरम्भिक प्रतिपादन कणादने किया प्रतीत होता है। उन्होंने अनुमानका 'अनुमान' शब्दसे निर्देश न कर 'लैङ्गिक' शब्दसे किया है, जिससे ज्ञात होता है कि अनुमानका मुख्य घटक लिङ्ग १. बृहदारण्य० २।४५। २. श्रोतव्यः अतिवाक्योम्यो मन्तव्यश्वोपपत्तिमिः । मत्वा च सततं ध्येय एते दर्शनहेतवः ।।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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